पिछले साल जून के तीसरे सप्ताह में मानसून सक्रिय हुआ था। जिले में जुलाई से सिंतबर के बीच महज 400 मिलीमीटर बरसात हो सकी। जबकि जिले की औसत बरसात के 550 मिलीमीटर है। जिले के राजियावास, बीर, मूंडोती, पारा प्रथम और द्वितीय, बिसूंदनी जैसे जलाशय तो सूखे ही रहे। पुष्कर सरोवर में भी कम पानी की आवक हुई। जहां 2012 में 520.2, 2013 में 540, 2014 में 545.8, 2015 में 381.44, 2016-512.07 बरसात हुई थी। वहीं 2017 और 20 18 में 450 मिलीमीटर से आगे आंकड़ा नहीं पहुंच पाया। केवल 2019 में ताबड़तोड़ बरसात से आंकड़ा 900 मिलीमीटर तक पहुंचा था।
वन विभाग और सरकार बीते 50 साल में विभिन्न योजनाओं में पौधरोपण करा रहा है। इनमें वानिकी परियोजना, नाबार्ड और अन्य योजनाएं शामिल हैं। इस दौरान करीब 50 से 60 लाख पौधे लगाए गए। पानी की कमी और सार-संभाल के अभाव में करीब 35 लाख पौधे तो सूखकर नष्ट हो गए। कई पौधे अतिक्रमण की भेंट चढ़ गए। हालांकि वन विभाग का दावा है, कि अजमेर जिले 13 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र बढ़ा है।
मौसमअजमेर जिले में ऋतु चक्र गड़बड़ा गया है। दस साल पहले तक कार्तिक माह में गुलाबी ठंडक दस्तक दे देती थी। लेकिन अब अक्टूबर-नवम्बर तक गर्मी रहने लगी है। पिछले साल तो अक्टूबर के अंत तक तापमान 38 से 40 डिग्री के बीच रहा था। इससे पहले साल 2015 में दिसम्बर तक अधिकतम तापमान 30 डिग्री के आसपास था। जबकि 2016 में जनवरी के दूसरे पखवाड़े में ही अधिकत तापमान 25 से 29 डिग्री के बीच पहुंच गया था। इस साल 8 और 9 जनवरी को अजमेर में घना कोहरा छाया और ओस की फुहारें भिगोती रही थीं। बीती 29 मार्च को दिनभर मौसम धूल-धूसरित रहा था।
पिछले साल 22 मार्च से 19 मई तक लॉकडाउन से पर्यावरण को काफी फायदा हुआ था। अजमेर में लॉकडाउन से पहले निजी, सरकारी वाहन, ट्रक, सिटी बस, ऑटो, टेम्पो, दोपहिया वाहनों के संचालन से अजमेर में एयर क्वालिटी इंडेक्स 120 से 175 तक रहता था। वाहन थमे तो एयर क्वालिटी इंडेक्स लुढ़कता हुआ 43 से 45 तक पहुंच गया था। कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन 15 से 20 प्रतिशत कम हो गया था।
लॉकडाउन में वन्य जीवों-पक्षियों की जीवनचर्या में बदलाव हुआ था। गौरेया, मैना, कोयल और अन्य पक्षियों के कलरव पर अध्ययन किया गया। कई शहरों में पक्षियों की आवाज 40 से 50 प्रतिशत तक स्पष्ट सुनी गई थी।
-वानिकी परियोजना, नाबार्ड और अन्य योजनाएं में लगाए 45 लाख पेड़-पौधे बर्बाद
-अरावली पर्वतमाला में 50 प्रतिशत खनन, बजरी का अवैध कारोबार
-अजमेर जिले में 25 प्रतिशत वन्य और ग्रीन बैल्ट में अतिक्रमण
-शहरी क्षेत्रों में 60 फीसदी कृषि भूमि तब्दील हो चुकी हैं कॉलोनियों में
-जिले के 40 से ज्यादा छोटे ग्रामीण तालाबों में नहीं पहुंचता बरसात का पानी
अरांई: 110.14 प्रतिशत जल दोहन, भिनाय-125.25 प्रतिशत, जवाजा-163.34 प्रतिशत, केकड़ी-168.42 प्रतिशत, मसूदा-112.04 प्रतिशत, पीसांगन-178.40 प्रतिशत, सिलोरा-165.94 प्रतिशत, सरवाड-130.99, श्रीनगर-178.61 प्रतिशत जल दोहन (डार्क जोन) ग्लोबल वार्मिंग से मौसम असामान्य बनता जा राह है। जिन स्थानों पर कम बरसात होती थी वहां अतिवृष्टि और बाढ़ आ रही है। अजमेर में प्रत्येक ऋतु में तापमान सामान्य रहा करता था। यहां सर्दी और बरसात का मौसम तो सबसे सुहावना होता था। लेकिन अब यह धीरे-धीरे गर्म शहर बनता जा रहा है। सघन पौधरोपण नहीं हुआ तो पर्यावरण असंतुलन की स्थिति बन सकती है।
प्रो. प्रवीण माथुर, पर्यावरण विज्ञान विभागाध्यक्ष महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय