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अजमेर

Eid Ul Adha 2024 Date : चांद दिखा, 17 जून को मनाया जाएगा ईद उल अजहा, जानिए क्यों दी जाती है कुर्बानी

इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार, पैगंबर इब्राहिम की परीक्षा लेने के लिए अल्लाह ने उनके सपने में आकर उनकी सबसे प्यारी चीज कुर्बान करने के लिए कहा।

अजमेरJun 08, 2024 / 12:10 pm

जमील खान

Ajmer News : अजमेर. राजस्थान के अजमेर में इस्लामिक कलैंडर के जिल्हिज माह आगाज के साथ ही शुक्रवार रात चांद के दीदार होने पर अब ईदु उल अजहा (बकराईद) 17 जून को मनाया जा एगा। अजमेर में दरगाह सूत्रों ने बताया कि चांद दिखाई देने पर शनिवार को पहली ‘जिलहिज्जा’ होगी। इस हिसाब से 13 जून को ख्वाजा साहब की महाना छठी और 17 जून को ईद उल अजहा मनाया जाएगा। अजमेर में ब्यावर रोड स्थित बकरामंडी में बकरा व्यापारियों ने डेरा डाल लिया है। बकरों की खरीद-फरोख्त शुरू हो गई है। दरगाह क्षेत्र के सम्पन्न खादिम जिन्होंने बकरों को ‘पाला’ है, बकराईद पर अल्लाह की राह में कुर्बान करेंगे। इस ईद की खासियत ये है कि यह पूरे तीन दिन तक मनाई जाती है।
इसलिए मनाई जाती है बकराईद
इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार, पैगंबर इब्राहिम की परीक्षा लेने के लिए अल्लाह ने उनके सपने में आकर उनकी सबसे प्यारी चीज कुर्बान करने के लिए कहा। उस वक्त पैगंबर इब्राहिम को सबसे प्यारा उनका बेटा इस्माइल था, जो खुद एक पैगंबर थे। उन्होंने अपने बेटे को कुर्बानी की बात बताई तो वह इस बात के लिए तैयार हो गए। उनका कहना था कि अगर यह अल्लाह का हुक्म है तो उन्हें इसे मानना होगा। इसके बाद पैगंबर इब्राहिम अपने बेटे के साथ अपने घर से दूर गए। कुर्बानी से पहले पैगंबर इब्राहिम ने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली ताकि कुर्बानी के वक्त बेटे के प्यार में उनके हाथ रुक नहीं जाए।
जब वह अपने बेटे की गर्दन पर छूरी चला रहे थे, तो अल्लाह ने पैगंबर इस्माइल की जगह एक मेढे को रख दिया। यही कारण है कि मुसलमान हर साल पैगंबर इब्राहिम और इस्माइल की याद ईद-उल-अजहा पर कुर्बानी करते हैं। ईद पर जिस जानवर की कुर्बानी की जाती है, उसके गोशत को तीन हिस्सों में बांटा जाता है। एक-तिहाई हिस्सा परिवार के लिए, एक-तिहाई हिस्सा दोस्तों एवं रिश्तेदारों के लिए और एक तिहाई हिस्सा गरीबों में बांटा जाता है। ईद उल फित्तर के बाद ईद उल अजहा मुसलमानों के लिए दूसरा सबसे बड़ा त्योहार है।
सिर्फ जानवरों की कुर्बानी नहीं दी जाती
इस्लाम के अनुसार, ईद उल अजहा में सिर्फ जानवरों की ही कुर्बानी नहीं दी जाती। इस दिन मुसलमान बुरी आदतों, ख्यालों और बुरे कामों को भी त्यागने का संकल्प लेते हैं।

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