निगम के राजाखेड़ा बिजलीघर में 8 एमवीए और 5 एमवीए के दो पावर ट्रांसफॉर्मर स्थापित हैं, जो इसकी इंस्टॉल्ड कैपिसिटी माने जाते है और इस क्षमता तक कनेक्शन दिए जा सकते है। लेकिन इतनी बड़ी क्षमता उपलब्ध होने के बाद भी इस पर मात्र 5 एमवीए का ही लोड उपलब्ध है, उसके बाद ही क्षेत्र में 7000 से अधिक घरो में विद्युत कनेक्शन तक नहीं दिए गए हैं, जबकि इन घरों में पर्याप्त विद्युत का उपभोग होता है। नतीजतन ये स्थापित क्षमता भी ओवरलोड हो जाती है। सिस्टम हांफने से बार बार ट्रिपिंग का कारण बन जाता है।
राजाखेड़ा में 10000 से अधिक परिवार निवास करते हैं, जबकि विद्युत कनेक्शन सिर्फ 2500 ही हैं। इन्ड्रस्टियल कनेक्शन की संख्या भी संचालित होने वाले संस्थानों से कम है। कई जगह कृषि कनेक्शन से उद्योग संचालित किए जा रहे हैं। जिनकी अधिकारियों को जानकारी होते हुए भी कार्यवाही नहीं करना कई सवाल खड़े करता है। अधिकारियों की निगहबानी में कथित तौर पर ठेकेदार भी इस ओवर लोडिंग को बढ़ाने में शामिल हैं।
निराशाजनक यह है कि निगम के स्थानीय अधिकारियों से लेकर आला अधिकारी भी इन तथ्यों से परिचित हैं, कि निगम के पास कनेक्शन देने की पर्याप्त क्षमता है, जिसका पूरा दोहन भी हो रहा है, तो दोहन करने वालो को जबरन कनेक्शन क्यों नहीं दिए जाते जबकि निगम ऐसे लोगों का सर्वे कई बार किया जा चुका है, जिनमें डोमेस्टिक, नॉन डोमेस्टिक और इन्ड्रस्ट्रीयल संस्थाए शामिल हैं। क्यों इन्हें चोरी की खुली छूट दी जा रही है।
चोरी के चलते मुफ्त में मिल रही बिजली का दुरुपयोग भी क्षेत्र में चरम पर है। घरों में कई कई किलोवाट की क्षमता के हीटर्स पर जानवरों का भोजन रात रात भर पकाया जाता है। रात्रि में तो वाणिजियक उपभोक्ता सीधे ही लाइन से उपभोग कर मोटा मुनाफा कमा रहे हैं। कनेक्शन देने से चोरी पर लगाम लग लग सकती है, वहीं दुरुपयोग को भी नियंत्रित किया जा सकता है।
चोरी के चलते न तो वोल्टेज मिल पा रहे हैं, न ही पर्याप्त बिजली। जिससे भीषण शीत में बुजुर्गों के हालात खराब हैं। सुमन, उपभोक्ता इनका कहना है इतना वोल्टेज तो मिले, की घर के उपकरण चल सकें। सुबह से दोपहर तक तो हालात ये हैं कि वोल्टेज 100 से 150 ही मिल पाता है। जिससे घर के काम तक नहीं हो पाते।