महाराजा दाहरसेन का महज 12 वर्ष की उम्र में राज्याभिषेक किया गया। अखण्ड भारत में महाराजा दाहरसेन का पहला परिवार था जो राष्ट्र की रक्षा के लिए कुर्बान हो गया। उनकी पत्नी लाडीबाई,बेटियां सूर्यकुमारी और परमाल ने मुहम्मद बिन कासिम और खलीफा के खिलाफ अंतिम सांस तक युद्व किया। इस घटना को सदियां बीत गई और विभाजन के चलते सिंधियों की जन्मभूमि सिंध भी छिन गई। सही बात तो यह है कि सिंधियों की आजादी के बाद की पीढ़ी महाराजा दाहरसेन को भी भूल गई। यह तो भला हो नगर सुधार न्यास (अब अजमेर विकास प्राधिकरण )के तत्कालीन अध्यक्ष ओंकारसिंह लखावत का,जिन्होने एक मई 1997 को कोटड़ा में महाराजा दाहरसेन का भव्य स्मारक बनाकर सिंधियों को भूले बिसरे अपने गौरशाली इतिहास और महान राष्ट्रनायक की जीवनी से रुबरु कराया।
यहां मुद्दे को थोड़ा मजेदार ट्विस्ट देते है। अक्सर मुझसे या फिर सिंधी समाज के अनेक लोगों से मजाक में ही सही यह सवाल किया जाता रहा है कि स्वाधीनता संग्राम या फिर सेना में सिंधियों का क्या योगदान है। तो भैया सबसे पहले तो महाराजा दाहरसेन और उनका परिवार जिन्होने मुगल आक्रांताओं को हिंदुस्तान में प्रवेश से रोके रखा और बलिदान हो गए। हेमू कालाणी को भी याद कीजिए जिन्हें अंग्रेजों ने महज 18 वर्ष की आयु में फांसी पर चढ़ा दिया। सिंधी समाज के एडमिरल राधाकिशन हरीराम टहिल्याणी भारतीय नौसेनाध्यक्ष बने। अजमेर के ही नौजवान मेजर रमेश बदलानी 1971 में पाकिस्तान युद्व में शहीद हुए। मौजूदा समय में भी सिंधी समाज के अनेक युवा भारतीय नौसेना में शामिल है। छोडि़ए लगता है मजाक मजाक में मामला कुछ गंभीर हो गया है।
बहरहाल, भारतीय सिंधु सभा 14 अगस्त को सिंधु स्मृति दिवस मना रही है। विभाजन की घोषणा की वजह से सिंधियों को अपना सब कुछ छोड़कर खाली हाथ ङ्क्षसध छोडऩा पड़ा। उसके बाद की कहानी तो आपको मालूम है। जब पूरा देश आजादी का जश्न मना रहा था तब लाखों भूखे प्यासे सिंधी परिवार खाली हाथ अपना वजूद बचाने की मशक्कत कर रहा था।
बहरहाल, भारतीय सिंधु सभा 14 अगस्त को सिंधु स्मृति दिवस मना रही है। विभाजन की घोषणा की वजह से सिंधियों को अपना सब कुछ छोड़कर खाली हाथ ङ्क्षसध छोडऩा पड़ा। उसके बाद की कहानी तो आपको मालूम है। जब पूरा देश आजादी का जश्न मना रहा था तब लाखों भूखे प्यासे सिंधी परिवार खाली हाथ अपना वजूद बचाने की मशक्कत कर रहा था।
राष्ट्र भक्ति की इससे बड़ी मिसाल और कहां मिलेगी। अलबत्ता पूर्व में सिंधी समाज 14 अगस्त को काला दिवस के रुप में मनाते थे लेकिन मसला चूंकि आजादी से जुड़ा था तो अब इस दिन को सिंध स्मृति दिवस की तरह मनाया जाने लगा है । 24 व 25 अगस्त को चालीहो महोत्सव के तहत अनेक धार्मिक कार्यक्रम होंगे। 40 दिन के व्रत के बाद सैकड़ों लोग नियमित दिनचर्या शुरु करेंगे। इस दिन को यादगार बनाने के लिए फॉयसागर, लव कुश उद्यान और आनासागर चौपाटी स्थित जे. टी (मुझ सहित कुछ खुराफाती लोगों ने जे. टी का फुल फार्म झूलेलाल टर्मिनस कर दिया है ) पर अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे।