अजमेर

यहीं परवान चढ़ा था ढोला-मारू का प्रेम, देखिए अब कैसा है इस गांव का हाल..

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अजमेरJul 20, 2018 / 03:58 pm

raktim tiwari

रक्तिम तिवारी/अजमेर।
ढोला-मारू की प्रेम गाथा के लिए नरवर गांव भले ही मशहूर रहा हो, लेकिन यहां पानी के स्त्रोत रहे तालाब और बावड़ी बर्बाद हो गए हैं। राज्यपाल कल्याण सिंह के अगस्त में आगमन को लेकर तैयारियां जारी हैं। रंग-रोगन और मरम्मत कार्य जारी हैं, पर गांव की समस्याएं भी अपनी जगह कायम है।
नरवर गांव को महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय ने गोद लिया है। यहां 2 अगस्त को राज्यपाल कल्याण सिंह का दौरा प्रस्तावित है। यहां गांव एक तरह से नागौर-अजमेर जिले का सीमा प्रहरी भी है। साथ ही ढोला मारू की प्रेम गाथा के लिए मरुधरा और देश-विदेश में जाना जाता है। इन सबके बावजूद गांव के पारम्परिक पेयजल स्त्रोत की स्थिति खराब है। ऐसा तब है जबकि सरकार ने गांवों में पुराने तालाब, कुओं, बावडिय़ों के जीर्णोद्धार पर सर्वाधिक जोर दिया है।
42 साल से नहीं भरा बूल्या तालाब

नरवर गांव में प्रवेश करते ही दांई ओर बूल्या तालाब बना हुआ है। कभी बबूल के पेड़ों की बहुतायत के चलते ही इसका नाम बूल्या तालाब पड़ा। गांव के रतनलाल तिवाड़ी ने बताया कि 1975 में हुई अतिवृष्टि में यह तालाब अंतिम बार लबालब भरा था। इसके बाद तालाब में कभी पर्याप्त पानी नहीं रहा। तालाब में पानी आवक के स्त्रोतों पर कई जगह अतिक्रमण हो चुके हैं। बेतरतीब एनिकट बनाने से भी इसमें बरसात का पानी नहीं पहुंच रहा है। अभी तालाब में दो गड्ढों में नाम मात्र का पानी है।
बर्बादी के कगार पर एक तिल की बावड़ी

गांव के किले की तरफ जाने वाली सड़क पर एक तिल की बावड़ी बनी हुई है। इसका नाम और निर्माण की भी रोचक कहानी है। महावीर प्रसाद ने बताया कि बरसों पहले गांव का घासल जाट खेतों में फसल बोता था। साथ ही राजा को लगान चुकाता था। एक बार तिल का एक दाना जेब में रहने पर वह राजा के पास वापस गया। तब राजा ने ईमानदारी से खुश होकर लगान माफ कर दिया। एक तिल से उसने फसल तैयार कर बावड़ी बनवाई। इसमें कभी खूब पानी रहता थी। राजा-रानी भी इसमें बैठकर चौपड़ खेलते थे। वक्त के साथ बावड़ी बर्बाद हो रही है। इसका जीर्णोद्धार कराया जाए तो पानी का उत्तम स्त्रोत उपलब्ध हो सकता है।
शुरू हुआ रंग-रोगन और मरम्मत

राज्यपाल के आगमन को देखते हुए गांव में तैयारियां जारी हैं। गांव के माध्यमिक स्कूल और अन्य भवनों पर गुलाबी रंग कराया जा रहा है। विश्वविद्यालय के सहयोग से 5 हजार लीटर की पानी की टंकी रखवाई गई है। गांव की उजाड़ वाटिका की चारदीवारी बनवाई जा रही है। लेकिन अन्य गांवों-शहरों की तरह यहां कई जगह गंदगी भी कायम है। कई जगह कच्ची सड़कें हैं।

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