कभी विज्ञान संकाय का पूरे राजस्थान में दबदबा रहता था। मेडिकल और इंजीनियरिंग में हजारों विद्यार्थियों को दाखिले मिलते थे। वो संकाय 3.76 प्रतिशत की गिरावट के साथ कॉमर्स से कहीं दूर पिछड़ गया। देहात और शहरी स्कूल में विज्ञान के शिक्षकों, प्रयोगशाला और उपकरणों की कमियों ने इस संकाय को कहीं का नहीं छोड़ा। शिक्षा मंत्रीजी का गृह जिला तो विज्ञान में तीसवें और कॉमर्स में छब्बीसवें स्थान पर किसी तरह टिक पाया।
अपेक्षाकृत छोटे समझे जाने वाले सवाई माधोपुर, नागौर, श्रीगंगानगर और चूरू ने कमाल कर दिखाया। संसाधनों से भरपूर जयपुर , उदयपुर , जोधपुर , कोटा जिले तो नतीजों में मुंह दिखाने लायक भी नहीं रहे। हकीकत में सरकार पिछली शिक्षा नीतियों की बखिया उधेडऩे में ज्यादा व्यस्त रही। सही हालात और जमीनी हकीकत जानना मुनासिब नहीं समझा। ऐसा तब है जबकि सरकारी स्कूल में प्राइवेट से कहीं ज्यादा प्रशिक्षित शिक्षक पढ़ा रहे हैं। यह राजस्थान लोक सेवा आयोग या पंचायती राज विभाग से चयनित हैं।
यह तो अच्छा है कि खुद बोर्ड ने मेरिट लिस्ट बंद कर सरकारी नीतियों की खामियों को छुपा दिया। आगे और भी कई नतीजे आने हैं। अगर कोर्स बदलने, एक-दूसरे को कोसने और वाह-वाही से ही नतीजे चमक जाते तो ना माध्यमिक शिक्षा बोर्ड को परीक्षाएं करानी पड़ती ना कोई स्कूल आगे बढ़ता और पिछड़ता। बेहतर है कि सरकार किताबें और कोर्स बदलने के बजाय शिक्षा की गुणवत्ता पर ध्यान दे।