डॉ. गौड़ इंडियन चेस्ट सोसायटी राजस्थान चैप्टर की ओर से अजमेर में निद्रा व निद्रा संबंधी श्वास रोगों पर संबोधित कर रहे थे। सेमिनार के संयोजक सचिव चेस्ट फ ॉरम पल्मनोलॉजिस्ट डॉ प्रमोद दाधीच ने बताया कि 70 प्रतिशत लकवा व हार्ट अटैक स्लीप एपनिया की वजह से होते हैं। ब्लड प्रेशर हाई होना, अनियमित धडकऩ, ब्लड शुगर भी स्लीप एपनिया की वजह से होता है।
स्लीप एपनिया… 33 प्रतिशत आकस्मिक मृत्यु की वजह स्लीप एपनिया ही है। उन्होंने बताया कि मोटापा, गर्दन का मोटा होना, चेहरे का अत्यधिक लंबा होना, नींद में खर्राटे आना, चिड़चिड़ापन, अत्यधिक पेशाब आना, गला सूखना व प्यास लगना, स्लीप एपनिया के प्रमुख लक्षण हैं। उन्होंने बताया कि 30 की उम्र के बाद 33 प्रतिशत लोग सोते वक्त खर्राटे आते हैं। उनमें महिलाओं की तुलना में पुरुष अधिक होते हैं। इस सत्र की अध्यक्षता जेएलएन मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल के श्वास रोग विशेषज्ञ वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ. नीरज गुप्ता ने की।
शुरू से हो सकता है निदान जयपुर के पल्मनोलॉजिस्ट डॉ रजनीश शर्मा पीएसजी इंटरप्रिटेशन एंड लिमिटेशन विषय पर विचार रखते हुए कहा कि बीमारी का निदान शुरूआती स्टेज पर होने से गंभीर बीमारियों को होने से रोका जा सकता है। दिल्ली के स्लीप क्लिनिकल हैड डॉ. सुशांत खुराणा ने मैनेजमेंट ऑफ ओएस विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा कि बीमारियों के निदान के बाद इलाज में टीम वर्क की जरूरत होती है। इस सत्र की अध्यक्षता जेएलएन हॉस्पिटल के डॉ. रमाकांत दीक्षित ने की।
जागरुकता है जरूरी डॉ. प्रमोद दाधीच ने बताया कि सेमिनार का उद्देश्य चिकित्सकों को नींद व स्वास्थ्य में संबंध, खर्राटे व स्लीप एपनिया जैसे रोगों के बारे में जागरूक करना था क्यों कि एक जागरूक चिकित्सक रोग की पहचान शुरुआती स्टेज पर कर ले तो मरीज लाभांवित होता है। उन्होंने बताया कि स्लीप एपनिया एक जानलेवा रोग है जो कि प्रति 100 में से 2 से 4 प्रतिशत लोगों को होती है। मोटे लोगों में 20 से 40 प्रतिशत तक हो सकती है।