1132 में एक युद्ध के बाद अर्णोराज चौहान ने खुदाई कराकर विशाल जलाशय का निर्माण कराया था। यह आनासागर झील कहलाती है। मुगल बादशाहों ने यहां बारादरी और बगीचा बनवाया। इसी बारादरी पर संगमरमर से निर्मित दीवान-ए-खास बना हुआ है। इसमें बैठकर मुगल बादशाह अक्सर सूर्योदय-सूर्यास्त और अरावली की खूबसूरती को निहारते थे। 1818 में अंग्रेजों ने बारादरी के निकट दफ्तर बनवाया था। यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीन है।
बैंक एक्सपर्ट बताएंगे सॉल्यूशन, अब यूं आएंगे स्टूडेंट्स अजमेर. कोरेाना संक्रमण में एकसाथ विद्यार्थियों को बुलाने वाले महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय को अब ‘जिम्मेदारी याद आई है। काउंटर पर कैशलेस व्यवस्था और ई-वॉलेट को लेकर प्रशासन ने बैंक के तकनीकी विशेषज्ञों से बातचीत शुरू की है। इसके अलावा परीक्षात्मक कार्यों के लिए विद्यार्थियों को जिलेवार बुलाने की योजना बनाई जा रही है।
विश्वविद्यालय के महाराणा प्रताप भवन स्थित कैश काउन्टर पर डेबिट-क्रेडिट कार्ड या किसी एप से फीस भुगतान का विकल्प नहीं है। डुप्लीकेट मार्कशीट, डिग्री, प्रोविजनल सर्टिफिकेट लेने वाले विद्यार्थियों से सिर्फ कैश लिया जाता है। इसी तरह, माइग्रेशन, डिग्री, सर्टिफिकेट, मार्कशीट के लिए विद्यार्थियों के डिजिटल लॉकर नहीं बनाए हैं। इससे चार दिन से विद्यार्थियों की भीड़ उमड़ी। ऐसा तब है जबकि कोरोना संक्रमण तेजी से फैल रहा है। पत्रिका ने ‘जिम्मेदारों के ऐसे सरोकार, तो बनेंगे हीं कोरोना के शिकार Ó शीर्षक से खबर प्रकाशित की। इसके बाद विवि में जिम्मेदारों की नींद उड़ी।