चौहानकाल में तारागढ़ किले सहित उसके निचले हिस्से में अजमेर बसाया गया। बाकायदा शहर की सुरक्षा के लिए मजबूत परकोटा बनाया गया। यह परकोटा दरगाह के अंदरकोट, नई सड़क-लाखन कोटड़ी से होकर नागफणी होता हुआ कोतवाली और इसके अंदर तक बना हुआ है। इसकी दीवारों का आसार (चौड़ाई) सुरक्षा और मजबूती के लिए आठ से दस फीट तक है। परकोटे के भीतर ही मदार गेट, ऊसरी गेट, त्रिपोलिया गेट, कोतवाली गेट, देहली गेट और आगरा गेट बने हुए हैं। इनके साथ ही गुमटियां, बुर्ज और अन्य निर्माण भी मौजूद हैं।
उपेक्षा के थपेड़ों से टूटती विरासत शहर की शान और सुरक्षा के लिए बना परकोटा उपेक्षा के थपेड़ों से धीरे-धीरे दरक रहा है। परकोटे की दीवारें कई जगह से टूट चुकी हैं। नई सड़क-नागफणी इलाके में बनी ऐतिहासिक छतरी तो पत्थरों पर किसी तरह टिकी हुई है। परकोटे को तोड़कर कई जगह मकान बन चुके हैं। इसे पर्याप्त संरक्षण की आवश्यकता है।
जिम्मेदारी संभालें विभाग देश की आजादी के बाद ऐतिहासिक इमारतों, महलों, कोस मीनार और पुरा महत्व के भवनों को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग और राज्यों के पुरातत्व विभागों के अधीन सौंपा गया। इनकी देखरेख और संरक्षण का जिम्मा इन्हीं विभागों के पास है। लेकिन शहर के परकोटे और दीवारों की देखरेख के लिए विभागों को पहल करने की जरूरत है।
परकोटा फैक्ट फाइल 5 से 10 किमी के दायरे में फैलाव 5 से ज्यादा प्राचीन गेट हैं निर्मित 8 से 10 फीट ऊंची हैं दीवारें 1 हजार साल से ज्यादा पुराना
परकोटा और इसकी दीवारें-गेट स्थापत्य कला का बेहतरीन नमूना हैं। यह अजमेर के साथ-साथ देश की शान हैं। प्राचीनकाल में किस तरह अजमेर सुरक्षित रहता था उसे परकोटा देखकर समझा जा सकता है। निश्चित तौर पर इसकी देखभाल और संरक्षण होना चाहिए।
प्रो. टी.के. माथुर पूर्व इतिहास विभागाध्यक्ष एमडीएसयू