मगर यह स्वीकृति मिलने में 3.5 माह माह से ज्यादा का समय लग गया। एेसे में वहां मौजूद प्रतिमाओं का काफी हिस्सा वहां से गायब हो गया। एेसे में विभाग द्वारा जिन प्रतिमाओं को जल्द से जल्द संरक्षित किया जा सकता था। उसका सुनहरा मौका विभाग ने अपनी लापरवाही के चलते गंवा दिया। पत्रिका ने 2 फरवरी को समाचार प्रकाशित कर इस मुद्दे को उठाया था।
काफी संख्या में गायब हुई प्रतिमाएं आज से लगभग 3.5 माह पूर्व जितनी पुरामहत्व की सम्पदाएं अजयपाल मंदिर परिसर में मौजूद थी। उसमें वर्तमान में काफी कमी आ गई है। काफी मात्रा में वहां मौजूद प्रतिमाएं अब देखने को नही मिली। वहीं कई सारी खंडित हो गई। इसी प्रकार से पत्थरों के बीच मलबे के ढेर में भी जहां भारी मात्रा में प्रतिमाओं के अवशेष दिखते थे। वे सब भी गायब हैं। गिनती की कुछ प्रतिमाएं वहां मौजूद हैं।
आए दिन खंडित हो रही प्रतिमाएं मंदिर परिसर में किसी प्रकार की सुरक्षा व्यवस्था व देखरेख का अभाव होने से आए दिन वहां प्रतिमाएं खंडित होती हैं। शनिवार को पत्रिका टीम जब अचानक वहां पहुंची तब भी ताजा खंडित प्रतिमाएं वहंा देखने को मिली। इससे साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि पुरामहत्व के इन अनमोल धरोहर के संरक्षण में सम्बंधित विभागों ने किस कदर लापरवाही बरती है। अगर समय पर विभाग चेत जाता और इन्हे संग्रहालय लाकर संरक्षित कर लिया जाता तो ये बच सकती थी।
स्वीकृति में इतना समय, अब देरी क्यों विभाग को प्रतिमाओं को संरक्षित करने के लिए स्वीकृति लेने में 3.5 माह से ज्यादा का समय लग गया। विशेष मानव-संसाधन व बजट की आवश्यक्ता नही होने के बावजूद मुख्यालय द्वारा समय पर प्रतिमाओं को संरक्षित करने की स्वीकृति नही दी गई। साथ ही अब स्वीकृति मिलने के बाद भी अगले सप्ताह तक शेष प्रतिमाओं को संग्रहालय लाया जाएगा। एेसे में अगर आगामी सप्ताह में मौजूद शेष प्रतिमाएं भी अगर गायब या खंडित हो जाएं तो इस सम्भावना को नकारा नही जा सकता।