दरबार के सेवादार फतनदास का कहना है कि सिंध पाक से संत दांदूराम के यहां आने के बाद वह कभी भी अपने परिसर से नहीं निकले। विभाजन के समय यहां आने के बाद वह करीब १३ वर्ष रहे। यहीं ६३ वर्ष पूर्व उन्होंने शरीर त्यागा। विशेषता यह है कि उनकी गद्दी पर कोई नहीं बैठा। गद्दी से ही दरबार संचालित है। जतोई शहर सिंध पाकिस्तान में है जहां से दांदूराम यहां आए और फिर कहीं नहीं गए।
गत वर्ष बनी झूलेलाल की २१ फीट ऊंची प्रतिमा आकर्षण का केन्द्र गत तीन अप्रेल २०२१ में झूलेलाल की २१ फीट ऊंची प्रतिमा यहां स्थापित की गई। जयपुर में करीब छह माह में बन कर तैयार हुई मूर्ति की लागत करीब ११ लाख रुपए आई। दरबार के ट्रस्ट पदाधिकारियों ने सर्वसम्मति से प्रतिमा को यहां विराजित कराया। चेटीचंड पर इस बार ध्वजारोहण भी यहां किया गया इसके बाद महोत्सव का आगाज किया गया।
छह धाम एक ही परिसर में जतोई दरबार में सबसे नीचे बाबा की गद्दी है। इसके उपर की मंजिल पर गुरूग्रंथ साहब गुरूदवा्रा है। पास ही शिव प्रतिमा, वैष्णोदेवी गुफा के पिंडी दर्शन व हाल ही में गत वर्ष स्थापित सिंधी समाज के इ्ष्ट देव झूलेलाल की विशाल प्रतिमा है। श्रदलुों का मानना है कि यहां छह धाम के दर्शन एक ही परिसर में हो जाते हैं। खास बात यहां सभी जाति वर्ग के लोगों की आस्था है।