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बोले खादिम…सिर्फ दरगाह दीवान कर सकते हैं काम, पढि़ए आखिर क्या है इसके पीछे वजह

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dargah ajmer sharif

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अजमेर.

ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह के दीवान सैयद जैनुल आबेदीन अली की ओर से दरगाह में समय-समय पर अदा की जाने वाली धार्मिक रस्मों के मामले में दायर याचिका को अदालत ने जनहित का माना है। इस मामले में अदालत ने आम सूचना जारी करने के आदेश दिए हैं। इससे अब कोई भी व्यक्ति अदालत में अपना पक्ष रख सकता है।

दरगाह के खादिमों ने दरगाह दीवान से धार्मिक रस्में संपादित कराने अन्यथा नवीन सज्जादानशीन की नियुक्ति के लिए गुहार लगाई है। इसको लेकर न्यायाधीश जया चतुर्वेदी ने जन प्रतिनिधित्व वाद के तौर पर स्वीकार करते हुए आम सूचना जारी करने के आदेश जारी किए।

अधिवक्ता निरंजन कुमार दौसी ने बताया कि दरगाह के खादिम पीर नफ ीस मिया चिश्ती, सैयद असलम हुसैन, हाजी सैयद मोहम्मद सादिक चिश्ती ने वाद प्रस्तुत किया। इसमें बताया कि ख्वाजा साहब की दरगाह का नियंत्रण व प्रबंधन केन्द्र सरकार के कानून अनुसार दरगाह कमेटी करती है। इसके तहत जियारत कराना व परम्परागत धार्मिक कार्य को अंजाम देने का कार्य खादिमों द्वारा वंशानुगत किया जाता है।

उर्स की रस्में प्रति वर्ष होती है। इनकी सदारत दरगाह दीवान जैनुल आबेदीन अली खां करते रहे हैं। याचिका में बताया कि हाल ही में संपन्न उर्स में गुस्ल की रस्म के दौरान अंतिम दिन 24 मार्च को दरगाह दीवान जैनुल आबेदीन अली खां ने अपने पुत्र नसीरुद्दीन का सज्जादानशीन घोषित करते हुए रात्रि में होने वाले गुस्ल में साथ ले जाने लगे जिसका खादिमों ने विरोध किया। परिणाम स्वरूप दरगाह अंजाम दी जाने वाली वर्षो पुरानी परम्परा का निर्वहन नहीं हो सका तथा दीवान के बिना अंतिम गुस्ल की रस्म अदा की गई।
इससे विवाद की स्थिति बन गई है।

दूसरी ओर दरगाह दीवान जैनुल आबेदीन अली जवाब में कहा गया कि जो वाद प्रस्तुत किया गया है वह सिद्धांतों के अनुसार पोषणीय नहीं है तथा विभिन्न न्यायालय द्वारा कई निर्णय पारित किए जाने के कारण रेस ज्यूडिकेटा के सिद्धांत से बाधित है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि हैरान.परेशान करने के प्रयोजन से मूल वाद पेश किया गया है तथा जिन लोगों ने वाद प्रस्तुत किया है वह पंजीकृत सदस्य नहीं है।

सज्जादानशीन का पद ख्वाजा साहब के वंश से वंशानुगत है और इस अधिकार से वर्ष 1975 से सज्जादानशीन पद से संबंधित धार्मिक कार्यो को अंजाम देते आ रहे है और प्रारम्भ से ही उनकी अनुपस्थिति में वह अपने पुत्र अथवा परिवार के अन्य सदस्यों के मार्फ त रस्मों को अंजाम दिलाते आ रहे है जो कि वर्षो पुरानी सर्वमान्य परम्परा है जिसे विभिन्न न्यायालयों द्वारा भी स्वीकृत माना गया है।

न्यायाधीश जया चतुर्वेदी ने सभी पक्षों को सुनने के बाद आम सूचना जारी करने के आदेश देते हुए कहा कि इस संबंध में न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत वाद में कोई भी पक्ष अपना हित रखते है तो स्वयं संस्था व जरिये अधिवक्ता पक्षकार बन अपना पक्ष रख सकते है।