यह खुशी की बात है कि महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय में पिछले साल मुस्लिम छात्रा यास्मीन बानो ने संस्कृत में गोल्ड मैडल हासिल किया। वहीं ऊर्दू में अनीस फातिमा को गोल्ड मैडल मिला। मगर यूनिवर्सिटी में पढऩे वाली मुस्लिम लड़कियों की संख्या पर नजर डाली जाए तो वह कुल विद्यार्थियों की 0.5 प्रतिशत भी नहीं है। वहीं मुस्लिम छात्रों की संख्या भी कोई खास नहीं है।
अवसर मिले तो नहीं रहेंगे पीछेमुस्लिम छात्र-छात्राओं को अगर अवसर मिले तो वे फायदा उठाने में पीछे नहीं रहेंगे। विशेषकर लड़कियों को अगर ज्यादा अवसर दिए जाएं तो वे बेहतर तरीके से परफोर्म कर पाएंगी। शिक्षा के प्रति पहले के मुकाबले काफी जागरुकता आई है लेकिन इसे महज शुरुआत ही कहा जा सकता है।
– डॉ. मोहम्मद आदिल मुस्लिम शिक्षा की ओर अग्रसर हो रहे हैं। नीट में भी कई बच्चे अच्छी रेंक लेकर आए हैं। दसवीं-बारहवीं में भी 97 प्रतिशत अंक आए हैं। उस्मानिया ख्वाजा स्कूल का परिणाम शत-प्रतिशत रहा है, लेकिन अभी काफी जागरुकता की दरकार है। – सैयद अबु तालिब, सचिव उस्मानिया ख्वाजा स्कूलपहले के मुकाबले जागृति कही जा सकती है, लेकिन टारगेट एचिव नहीं कर रहे। बीच में पढ़ाई छोड़ रहे हैं। सरकार को शिक्षा में स्कॉलरशिप और पर्मोशन देना चाहिए। मुस्लिमों में शिक्षा के प्रति जागृति आएगी तो समाज और देश की तरक्की होगी। – सैयद सरवर चिश्ती, पूर्व सचिव अंजुमन