मोरचंग, खड़ताल की धुनों और ढोलक की थाप ने दर्शकों को थिरकने पर मजबूर कर दिया। राजस्थान दिवस पर जिला प्रशासन और पर्यटन विभाग के तत्वावधान में आयोजित समारोह में यह रंग नजर आए।
बूंदू खां ने रेगिस्तान के जहाज ऊंट की खूबसूरती को लड़ली लूमा-झूमा ए म्हारो गोरबंध नखरालो… गीत में पिरोया। निम्बूड़ा-निम्बूड़ा गीत पेश करने पर दर्शकों ने तालियां बजाकर हौसला अफजाई की। उन्होंने दमा-दम मस्त कलंदर… गीत से सूफियत की महक पहुंचाई। इस दौरान बूंदू खां के साथियों ने मोरचंग, खड़ताल, हारमोनियम और ढोलक की सुंदर जुगलबंदी प्रस्तुत की।
बूंदू खां ने अमीर खुसरो के मशहूर कलाम छाप तिलक सब छीनी रे… और रंग-बधावा… पेश कर सूफी संस्कृति से रूबरू कराया। गीत केसरिया बालम पधारो…ने सुनने वालों को गुनगुनाने पर मजबूर कर दिया। उन्होंने गजानंद जी पधारो… से गणेश जी को याद किया। इससे पहले कैलाश और साथियों ने नगाड़े की ताल के बीच शहनाई की शानदार प्रस्तुति दी।
बूंदू खां ने अमीर खुसरो के मशहूर कलाम छाप तिलक सब छीनी रे… और रंग-बधावा… पेश कर सूफी संस्कृति से रूबरू कराया। गीत केसरिया बालम पधारो…ने सुनने वालों को गुनगुनाने पर मजबूर कर दिया। उन्होंने गजानंद जी पधारो… से गणेश जी को याद किया। इससे पहले कैलाश और साथियों ने नगाड़े की ताल के बीच शहनाई की शानदार प्रस्तुति दी।
समारोह में राजस्थान पत्रिका के सम्पादकीय प्रभारी उपेंद्र शर्मा, एडीएम प्रथम कैलाशचंद्र शर्मा, सीआरपीएफ के कमांडेंट भरत कुमार वैष्णव, नगर निगम की उपायुक्त ज्योति ककवानी आदि मौजूद थे।
राजस्थानी संगीत को नहीं मिल रहा प्रोत्साहन
राजस्थानी संगीत को नहीं मिल रहा प्रोत्साहन
पत्रिका से खास बातचीत में बूंदू खां ने कहा कि राजस्थानी संगीत को सरकार से खास प्रोत्साहन नहीं मिल रहा है। कोमल कोठारी जैसे कला मर्मज्ञों के प्रयासों से राजस्थानी कला एवं संस्कृति को सम्बल मिलता रहा। ख्याल, मांड, घूमर नृत्य राजस्थान की शान हैं। जैसलमेर-बाड़मेर के लंगा और अन्य घराने किसी तरह संगीत को बचाए हुए है।
विदेशी कर रहे हैं कद्र युवाओं में राजस्थानी संगीत के प्रति रुचि के सवाल पर बूंदू खां ने कहा कि नई पीढ़ी में ठेठ राजस्थानी गीत-संगीत, नृत्य सीखने में रुचि ज्यादा नहीं है। स्कूल-कॉलेज और विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में भी इसे ज्यादा तवज्जो नहीं दी गई है। राजस्थान दिवस, स्थानीय मेले, राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रमों के अलावा लोक कलाकारों को बहुत ज्यादा मौके नहीं मिलते हैं। जबकि आजादी से पहले राजघरानों में कलाकारों को भरपूर प्रश्रय मिलता था। अलबत्ता विदेशों में राजस्थान के लोकगीत, नृत्य, सूफी गायन को काफी प्रोत्साहन मिल रहा है।
कहीं बिजली कहीं पानी नहीं
बूंदूं खां ने कहा कि आजादी के 70 साल बाद भी बाडमेर के ढाणियों-मजरों में कहीं बिजली-कहीं पानी नहीं है। आज भी कई परिवार झूंपों में गुजर-बसर कर रहे हैं। क्षेत्र में विकास की काफी जरूरत है।
बूंदूं खां ने कहा कि आजादी के 70 साल बाद भी बाडमेर के ढाणियों-मजरों में कहीं बिजली-कहीं पानी नहीं है। आज भी कई परिवार झूंपों में गुजर-बसर कर रहे हैं। क्षेत्र में विकास की काफी जरूरत है।