चिकित्सा क्षेत्र में मरीजों और चिकित्सक के मध्य जो प्रमुख कड़ी होती है वह है नर्सेज । नर्स में सेवा और समर्पण भाव की छाया निहित है । जब भी यदि सेवा की बात चलती है तो जेहन में सबसे पहले जो छवि उभरती है वह नर्स की ही होती है।फ्लोरेंस नाइटेंगल के जन्मदिन पर मनाए जाने वाले नर्सिंग डे पर आवश्यकता है कि नर्सिंग कर्मी इस कोरोना के संकट में अपनी सेवा व समर्पण की भावना यूं ही बनाए रखें ।

अजमेर निवासी आशा वशिष्ठ की ड्यूटी नागौर के मेहरासी गांव में है । कोविड -19 के चलते लॉकडाउन की वजह से लगातार 47 दिन से वह अपनी बच्चियों से दूर रहकर गर्मी व धूप की परवाह किए बगैर गांव में ड्यूटी देकर अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा रही हैं। कोरोना बढऩे की आशंका के चलते अपनी बच्चियों को अजमेर में ही अपऽे से दूर अकेला छोड़ रखा है। बचपन में ही बच्चियों के सिर से पिता का साया उठ चुका है।

दिन भर अपनी ड्यूटी पूरी करने के बाद शाम को वीडियो कॉल करके अपनी बच्चियों से बात कर वे मां का फर्ज अदाकर दोहरी भूमिका निभा रही है। साथ ही गांव वालों से अच्छी तरह से बात कर उन्हें इस महामारी से बचाव के बारे में जागरूक रही हैं। गांव वाले भी उनका पूरा ध्यान रख रहे हैं ।
उनका कहना है कि परिवार से कई दिनों से दूर हैं मगर अस्पताल में मरीजों की सेवा पहला कर्तव्य है कोरोना से हम सब मिलकर लड़ेंगे और यह जंग अवश्य जीतेंगे नर्सेज डे पर हम सभी को यह संकल्प लेना होगा ।