वर्ष 2005 में राज्य के 15 जिला मुख्यालयों पर लॉ कॉलेज खोले गए। इनमें शुरुआत से अलग से प्राचार्य पद सृजित नहीं है। बीते 14 साल से वरिष्ठतम शिक्षक को कार्यवाहक प्राचार्य की जिम्मेदारी सौंपना जारी है। इनको ही कॉलेज शिक्षा निदेशालय वित्तीय अधिकार देता रहा है, ताकि कॉलेज को आय-व्यय में परेशानियां नहीं हो। अजमेर के लॉ कॉलेज में भी शुरुआत से यही व्यवस्था लागू है। यहां भी सीताराम शर्मा, डॉ. आर. एस. अग्रवाल सहित अन्य शिक्षक कार्यवाहक प्राचार्य रहे। डॉ. डी. के. सिंह भी वरिष्ठता के नाते यहां प्राचार्य थे। उनका पिछले दिनों निधन हो गया है।
यूं कैसे चलेगा काम लॉ कॉलेज में वित्तीय शक्तियां पूर्व प्राचार्य डॉ. सिंह के पास थीं। बिजली-पानी, टेलीफोन के बिल चुकाने, अस्थाई स्टाफ को पारिश्रमिक भुगतान, कोषालय में जाने वाले स्टाफ के वेतन-भत्तों के बिल पर हस्ताक्षर करने सहित विकास समिति के बजट का नियंत्रण उनके हस्ताक्षर से होता था। बीते दस दिन से कॉलेज शिक्षा निदेशालय ने वरिष्ठतम शिक्षक को वित्तीय अधिकार नहीं दिए हैं। ऐसे में यहां बिलों के भुगतान और अन्य दिक्कतें शुरू हो गई हैं। मालूम हो कि कॉलेज को राज्य सरकार अथवा यूजीसी से कोई बजट भी नहीं मिलता है।
तीन साल की सम्बद्धता भी नहीं
बीसीआई ने सभी विश्वविद्यालयों को लगातार तीन साल की सम्बद्धता देने को कहा है। इसको लेकर लॉ कॉलेज ने महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय और सरकार को कई पत्र भेजे पर कोई जवाब नहीं मिला है। कॉलेज ने विश्वविद्यालय को सत्र 2018-19, 2019-20 और 2020-21 का एकमुश्त सम्बद्धता शुल्क भी जमा करा दिया है। फिर भी स्थिति यथावत है। विश्वविद्यालय का कहना है, कि एकमुश्त सम्बद्धता के लिए एक्ट में संशोधन करना जरूरी होगा। इसके लिए सरकार और विधानसभा ही अधिकृत है।