कॉलेज को प्रतिवर्ष महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय का सम्बद्धता पत्र, निरीक्षण रिपोर्ट और पत्र भेजना पड़ता है। बीते दो सत्रों से इनकी अनुपालना नहीं होने पर बीसीआई से प्रथम वर्ष में प्रवेश की मंजूरी विलम्ब से मिल रही है। कौंसिल ने राज्य सरकार से अंडर टेकिंग भी मांगी। यह अवधि भी खत्म हो चुकी है।
फिर आए उसी स्थिति में… कॉलेज और सरकार फिर उसी स्थिति में आ गए हैं। सरकार को
अजमेर सहित अन्य लॉ कॉलेज में स्थाई प्राचार्य, पर्याप्त व्याख्याता और स्टाफ और संसाधनों की कमी दूर करनी है। बिना कमियां पूरी करे बीसीआई सत्र 2018-19 की शुरुआत होते ही प्रवेश की मंजूरी नहीं देगा। बीसीआई हर बार दाखिलों की सशर्त अनुमति देता है।
शिक्षकों की कमी बरकरार यूजीसी के नियमानुसार किसी भी विभाग में एक प्रोफेसर, दो रीडर और तीन लेक्चरर होने चाहिए। राज्य में कई विश्वविद्यालय और कॉलेज इस पर खरा नहीं उतर रहे। अजमेर के लॉ कॉलेज में कार्यवाहक प्राचार्य सहित छह शिक्षक हैं। कॉलेज में शारीरिक शिक्षक, खेल मैदान, सभागार, और अन्य सुविधाएं नहीं हैं।
तीन साल की सम्बद्धता पर नहीं फैसला बार कौंसिल ऑफ इंडिया ने सभी विश्वविद्यालयों को लॉ कॉलेज को तीन साल की एकमुश्त सम्बद्धता देने को कहा है। यह मामला विश्वविद्यालयोंऔर सरकार के बीच अटका हुआ है। विश्वविद्यालय अपनी छोडऩे को तैयार नहीं है। हालांकि महर्षि दयानंद सरस्वती और कुछ विश्वविद्यालयों ने सरकार को पत्र भेजा है। विशेषज्ञों की कमेटी बनाकर राय लेने की तैयारी भी की गई है।
सभी लॉ कॉलेजमें कमियों से बीसीआई वाकिफ है। विश्वविद्यालय की टीम पिछले महीने सम्बद्धता के लिए निरीक्षण कर चुकी है। तीन साल की एकमुश्त सम्बद्धता के लिए पत्र लिखा है।
डॉ. डी. के. सिंह कार्यवाहक प्राचार्य लॉ कॉलेज