अपने फर्जीवाड़े व कारनामों को लेकर सुर्खिया बनने वाले अजमेर विकास प्राधिकरण के अभियंता अब अपनी कारगुजारियां छुपाने के लिए महत्वपूर्ण दस्तावेज भी गायब करने में जुट गए हैं। इसका खुलासा तब हुआ जब शहर की सड़कों, पार्कों तथा योजना क्षेत्र में लगाई गली विभिन्न प्रकार की लाइटों की गणना के बाद हुआ।
एडीए ने जगहों पर 8500 लाइटें लगाई। जब ईएससीएल कम्पनी ने इन लाइटों को एलईडी लाइटों से बदलने के लिए सर्वे किया तो सामने आया कि इनमें से 1500 गायब हो चुकी है। जबकि प्रतिमाह इनके मेंटीनेंस पर एडीए 1.50 लाख रुपए का भुगतान मैंसर्स चन्द्रर इलेक्ट्रिकल को कर रहा है। सालाना इन गायब हुई लाइटों के मेंटीनेस पर एडीए 18 लाख रुपए खर्च कर रहा है।
मामले का भंडाफोड़ होते देखे एडीए की विद्युत शाखा के अभिंयाताओं ने इस कार्य की मेजरमेंट बुक (एमबी) ही गायब कर दी। एमबी में कार्य की सभी जानकारियां हैं। गायब हुई लाइटों पर ही एडीए अब तक करीब 20 लाख रुपए का भुगतान कर चुका है। वहीं एडीए के सहायक अभिंयता मांगीलाल प्रजापति खुद अपने जवाब में कह चुके हैं कि उन्हें बिजली की चोरी से चलने वाली लाइटों की जानकारी नहीं है।
गायब हुई एमबी, जारी हुआ सर्च नोट विद्युत शाखा के कार्यो में भ्रष्टाचार का खुलासा होने से घबराए अभियंताओं ने इस कार्य की माप पुस्तिका (एमबी) संख्या-1725 ही गायब कर दी। इसके बाद अधिशाषी अभियंता ने इसे ढूंढने के लिए सर्च नोट जारी किया है। एमबी एक वित्तीय दस्तावेज है। एमबी गायब होना वित्तीय अनियमितता की श्रेणी में आता है। एमबी गायब होने पर एडीए को मुकदमा दर्ज करवाना आवश्यक है। इससे इस षडय़ंत्र में शामिल लोगों के चेहरे सामने आएंगे। गायब हुई 1500 लाइटों को लेकर भी एडीए अभिंयाताओं ने पुलिस में मुकदमा दर्ज नहीं करवाया है न ही कहीं पर शिकायत ही दी है।
दिल्ली की फर्म के सर्वे में हुआ खुलासा राज्य सरकार से नियुक्त फर्म मैसर्स ईईएसएल दिल्ली से हुए एमओयू प्राधिकरण स्तर पर कर एडीए की लाइटों को एलईडी लाइटों में परिवर्तित किया जाना है। ईईएसएल द्वारा इसके लिए सर्वे किया गया। जिसमें तत्कालीन कनिष्ठ अभियंता, सहायक अभिंयता द्वारा सर्वेक्षण करवाया गया और सत्यापित भी करवाया गया। जिसमें 7088 विभिन्न प्रकार की लाइटें ईएसएसएल की सर्वे सूची में हैं।