नर्सरी की देखरेख कर रहे हनुमान शर्मा ने बताया कि अजमेर के सोफिया कॉलेज की एक टीचर की मां को कैंसर हो गया था। यहां से पौधे लेकर गए और उनकी माताजी ठीक हो गईं। इस पर उन्होंने नकद पुरस्कार दिया।
बढ़ा पक्षियों का कलरव नर्सरी में तैयार पौधों को अभियान चलाकर तिलोनिया स्थित आसपास के इलाकों में रोपा गया। इनमें औषधीय, फलदार पौधे लगाए गए। इससे क्षेत्र में पक्षियों का कलरव फिर से बढ़ गया है। गौरेया, तोते, कोयल, मैना, कौए, बुलबुल सहित अन्य पक्षियों के घरौंदे दिखाई देने लगे हैं। कई पौधों के फल-फूल पक्षियों का पसंदीदा भोजन हैं। वीरान क्षेत्र में हरियाली भी बढ़ गई है।
नर्सरी में हर साल 30 से 35 हजार पौधे तैयार किए जाते हैं। यह राजस्थान के विभिन्न जिलों के जंगल से लाए गए। शुरू में बीज को अंकुरित करने में समस्या आई लेकिन बाद में इस पर शोध कर बीजों को अंकुरित किया गया। नर्सरी में तैयार हो रहे किसी भी पौधे में केमिकल नहीं डाला जाता। वर्मी कम्पोस्ट यहीं पर तैयार करते हैं।
यह पेड़-पौधे प्रमुख
बरना, हर सिंगार (सिहारी), जाल, गुगल, बंबूल, दमा बेल, अड़ूसा, गुलमाल, पपीता, नीम गिलोय, बड़, पीपल जैसी 92 प्रजातियां हैं जिन्हें बचाए रखने का कार्य नर्सरी में किया जा रहा है।
50 लाख लगाए, 1 लाख बांटे
हनुमान के अनुसार वर्ष 1983 से 400 हैक्टयर में 50 लाख पौधे लगाए गए। हालांकि इनमें से 9 लाख पौधे ही बचे हैं, बाकी काटे जा चुके। वहीं वर्ष 2014 से अब तक करीब 1 लाख औषधीय पौधे बांटे जा चुके हैं।