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यहां के औषधीय पौधों से ठीक हुई कई बीमारियां

locationअजमेरPublished: May 27, 2022 02:55:36 pm

नर्सरी की देखरेख कर रहे हनुमान शर्मा ने बताया कि अजमेर के सोफिया कॉलेज की एक टीचर की मां को कैंसर हो गया था। यहां से पौधे लेकर गए और उनकी माताजी ठीक हो गईं। इस पर उन्होंने नकद पुरस्कार दिया।

यहां के औषधीय पौधों से ठीक हुई कई बीमारियां

यहां के औषधीय पौधों से ठीक हुई कई बीमारियां

युगलेश शर्मा

अजमेर. अतिक्रमण और ग्लोबल वार्मिंग के चलते कभी बर्बाद हुई पेड़-पौधों की नायाब 92 प्रजातियों को किशनगढ़ के समीपवर्ती तिलोनिया बेयरफुट कॉलेज में बखूबी संभाला जा रहा है। इनमें औषधीय और पशु-पक्षियों के महत्व से जुड़े पौधे शामिल हैं। आसपास के इलाकों में यह पौधे रोपने से हरियाली और पक्षियों का कलरव-कुनबा बढऩे लगा है। वहीं औषधीय पौधों के प्रयोग से कई लोगों को फायदा हुआ है। आमजन की ओर से भी ऐसे ही प्रयास किए जाएं तो राज्य के मैदानी और पहाड़ी इलाकों को हरा-भरा बनाया जा सकता है।
समाज कार्य एवं अनुसंधान केंद्र (एसडब्ल्यूआरसी) तिलोनिया बेयरफुट कॉलेज यूं तो विभिन्न देशों की सोलर ममास (महिलाओं) को सौर उपकरण बनाने, साक्षरता, मार्केटिंग के गुर सिखाने के लिए देश-दुनिया में मशहूर है। लेकिन यहां पारम्परिक खेती, बागवानी, प्राचीन कलाओं को भी संरक्षित किया जा रहा है। इसकी बानगी कॉलेज परिसर स्थित नर्सरी में दिखाई देती है।
कैंसर ठीेक होने पर दिया इनाम
नर्सरी की देखरेख कर रहे हनुमान शर्मा ने बताया कि अजमेर के सोफिया कॉलेज की एक टीचर की मां को कैंसर हो गया था। यहां से पौधे लेकर गए और उनकी माताजी ठीक हो गईं। इस पर उन्होंने नकद पुरस्कार दिया।

बढ़ा पक्षियों का कलरव

नर्सरी में तैयार पौधों को अभियान चलाकर तिलोनिया स्थित आसपास के इलाकों में रोपा गया। इनमें औषधीय, फलदार पौधे लगाए गए। इससे क्षेत्र में पक्षियों का कलरव फिर से बढ़ गया है। गौरेया, तोते, कोयल, मैना, कौए, बुलबुल सहित अन्य पक्षियों के घरौंदे दिखाई देने लगे हैं। कई पौधों के फल-फूल पक्षियों का पसंदीदा भोजन हैं। वीरान क्षेत्र में हरियाली भी बढ़ गई है।
1983 से है नर्सरी, 2014 से औषधीय पौधों की शुरुआत

बेयरफुट कॉलेज में नर्सरी हालांकि 1983 से है। लेकिन वर्ष 2014 से लुप्त प्रजातियों को बचाने का काम शुरू किया गया। इसके लिए तरूण, दिव्या, नदीम, हनुमान और नर्मदा ने मिलकर खोज की कि वल्चर कैसे जा रहे हैं। खोज करने वाले हनुमान शर्मा ही आज इस नर्सरी की देखभाल कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि खोज में सामने आया कि अरावली पर ब्लास्टिंग कर खनन करना और पेड़ पौधों के कटने से पक्षियों का दिखना कम हो रहा है। बाद में जहां पर पौधे लगाए गए हैं, वहां देखा गया तो कई ऐसे पशु-पक्षी देखने को मिले जो काफी समय से नजर नहीं आ रहे थे। इनमें हरियल, कई तरह की चिडिय़ां, गिद्ध आदि शामिल हैं। गिद्ध हालांकि 1 प्रतिशत ही देखने को मिले।
बिना केमिकल के पौधे
नर्सरी में हर साल 30 से 35 हजार पौधे तैयार किए जाते हैं। यह राजस्थान के विभिन्न जिलों के जंगल से लाए गए। शुरू में बीज को अंकुरित करने में समस्या आई लेकिन बाद में इस पर शोध कर बीजों को अंकुरित किया गया। नर्सरी में तैयार हो रहे किसी भी पौधे में केमिकल नहीं डाला जाता। वर्मी कम्पोस्ट यहीं पर तैयार करते हैं।

यह पेड़-पौधे प्रमुख
बरना, हर सिंगार (सिहारी), जाल, गुगल, बंबूल, दमा बेल, अड़ूसा, गुलमाल, पपीता, नीम गिलोय, बड़, पीपल जैसी 92 प्रजातियां हैं जिन्हें बचाए रखने का कार्य नर्सरी में किया जा रहा है।


50 लाख लगाए, 1 लाख बांटे
हनुमान के अनुसार वर्ष 1983 से 400 हैक्टयर में 50 लाख पौधे लगाए गए। हालांकि इनमें से 9 लाख पौधे ही बचे हैं, बाकी काटे जा चुके। वहीं वर्ष 2014 से अब तक करीब 1 लाख औषधीय पौधे बांटे जा चुके हैं।
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