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वास्तुदोष के चक्कर में पड़ी ये यूनिवर्सिटी, पढ़ाने के बजाय बेतुकी बातों पर विश्वास

locationअजमेरPublished: Nov 04, 2017 08:44:05 am

Submitted by:

raktim tiwari

काम अटकने और विकास कार्यों की धीमी रफ्तार के चलते प्रशासन नए प्रवेशद्वार निर्माण पर विचार कर रहा है।

maharishi dayanand saraswati university ajmer

maharishi dayanand saraswati university ajmer

रक्तिम तिवारी/अजमेर।

महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय पर भी वास्तुदोष भारी पड़ रहा है। ऐसा विश्वविद्यालय के आला अधिकारियों का मानना है। बार-बार काम अटकने और विकास कार्यों की धीमी रफ्तार के चलते प्रशासन नए प्रवेशद्वार निर्माण पर विचार कर रहा है। योजना को मंजूरी मिली तो जल्द कामकाज शुरू हो सकता है।
1 अगस्त 1987 को महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय (तब अजमेर यूनिवर्सिटी) की स्थापना हुई। शुरूआत में चार-पांच साल तक यह दयानंद कॉलेज परिसर में संचालित रहा। वर्ष 1990 में तत्कालीन उपराष्ट्रपति (बाद में राष्ट्रपति) डॉ. शंकर दयाल शर्मा ने कायड़ रोड पर नए भवन का शिलान्यास किया। वर्ष 1993-95 में यह मौजूदा भवन में शिफ्ट किया गया। कुलपति सचिवालय यानि बृहस्पति भवन के ठीक सामने विश्वविद्यालय का मुख्य प्रवेश द्वार बनाया गया। इसके बीच महर्षि दयानंद सरस्वती की प्रतिमा भी लगाई गई।
विद्यार्थी बढ़ रहे न ही शिक्षक

विश्वविद्यालय में अन्य संस्थाओं की अपेक्षाकृत विद्यार्थियों और शिक्षकों की संख्या बढ़ नहीं रही। शुरुआत में परिसर में 35 से 40 शिक्षक और करीब 2 हजार विद्यार्थी अध्ययनरत थे। पिछले दस साल में शिक्षकों की संख्या सिमटकर 18 रह गई है। विद्यार्थियों की संख्या भी 1100-1200 से ज्यादा नहीं है। नए शिक्षकों की भर्ती बार-बार अटक रही है। तमाम प्रयासों के बावजूद विद्यार्थियों की तादाद नहीं बढ़ रही है।
सिमटता गया क्षेत्राधिकार

वर्ष 2002 तक महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय के क्षेत्राधिकार प्रदेश में सर्वाधिक जिले थे। यह विश्वविद्यालय बीकानेर , कोटा , बारां, जोधपुर , श्रीगंगानगर, जालोर, सिरोही, पाली, बाड़मेर सहित अन्य जिलों के कॉलेज में परीक्षाएं कराता था। वर्ष-2003 में बीकानेर और कोटा विश्वविद्यालय बनते ही इसका क्षेत्राधिकार कम हो गया। चार वर्ष पूर्व जयनारायण विश्वविद्यालय को जोधपुर, पाली, जालोर, सिरोही और अन्य जिलों के कॉलेज सौंप दिए गए। महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय के पास अजमेर, टोंक, भीलवाड़ा और नागौर जिले के कॉलेज रह गए हैं।
उच्च स्तर पर नए प्रवेश द्वार पर विचार
विश्वविद्यालय के सिमटते दायरे को लेकर आलाधिकारी परेशान हैं। कुछेक मुख्य प्रवेश द्वार सहित भवनों में वास्तुदोष मानते हैं। मुख्य प्रवेश द्वार के सामने बीकानेर-पुष्कर राष्ट्रीय राजमार्ग और खाली मैदान है। इसके चलते कई वास्तुशात्रियों ने इसका प्रवेश द्वार चाणक्य भवन के पीछे वाली रोड को जोडऩे वाली सड़क से निकालने की सलाह दी है। लेकिन यहां बीच में कैंटीन होने से सड़क की चौड़ाई कम है। अलबत्ता उच्च स्तर पर नए प्रवेश द्वार पर विचार जारी है।
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