scriptMDSU: अगर ऑनलाइन करते ये काम, तो नहीं होता घूसकांड | MDSU: Online Affiliation work not start in university | Patrika News

MDSU: अगर ऑनलाइन करते ये काम, तो नहीं होता घूसकांड

locationअजमेरPublished: Nov 28, 2020 10:34:02 am

Submitted by:

raktim tiwari

हायर एज्यूकेशन पोर्टल से जुड़ पाया एकेडेमिक विभाग। तीन साल से ठंडे बस्ते में राजभवन की सिफारिश।

mdsu affilation process

mdsu affilation process

अजमेर. महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय को दागदार करने वाले ‘घूसकांडÓ को रोका जा सकता था। राजभवन की सिफारिश को दरकिनार करने और एकेडेमिक विभाग को हायर एज्यूकेशन पोर्टल से नहीं जोडऩे के कारण ही निलंबित कुलपति और उसके दलालों ने व्यवस्था की धज्जियां उड़ाई। तीन साल से विश्वविद्यालय सम्बद्धता और अन्य कार्यों को मैन्युएल पद्धति से चला रहा है।
विश्वविद्यालय प्रतिवर्ष बीएड, लॉ और स्नातक/स्नातकेात्तर कॉलेजों से सम्बद्धता फीस वसूलता है। बाद में टीम भेजकर कॉलेज का निरीक्षण कराया जाता है। शिक्षक, संसाधन, पुस्तकालय, कम्प्यूटर, खेल मैदान और अन्य सुविधाओं की रिपोर्ट मिलने के बाद सभी विश्वविद्यालय संबंधित कॉलेज को एक या दो साल की अस्थाई सम्बद्धता देता। इससे प्रतिवर्ष विलम्ब होता है। निरीक्षण पत्रावली निकालने में देरी, बेवजह अड़ंगे लगाने, प्रबंध मंडल बैठक में विलम्ब जैसे कारण इसके जिम्मेदार होते हैं।
राजभवन के निर्देशों को ठेंगा
तत्कालीन राज्यपाल कल्याण सिंह ने साल 2017 में सभी विश्वविद्यालयों को सम्बद्धता कार्य कम्प्यूटरीकृत करने के निर्देश दिए थे। मदस विश्वद्यिालय को भी निजी और सरकारी कॉलेज से जुड़ी निरीक्षण रिपोर्ट, शैक्षिक स्टाफ, फीस और अन्य पत्रावलियां कम्प्यूटर पर अपलोड करने के अलावा कॉलेज की सूचना हायर एज्यूकेशन पोर्टल से जोड़ी जानी थी। लेकिन तीन साल में राजभवन के आदेशों की पालना नहीं हुई।
ऑनलाइन कार्य से होते यह फायद
-विद्यार्थी और उनके अभिभावकों को सूचना लेने में जानकारी
-पोर्टल से कॉलेज की सम्बद्धता जानना आसान
-फीस, संसाधनों की जानकारी लेने में सुविधा
-कॉलेज में संचालित कोर्स, विद्यार्थियों
-शिक्षकों की मिलती सूचना
-ऑनलाइन जमा होते आवेदन और सम्बद्धता शुल्क
-पत्रावलियां कंप्यूटर पर अपलोड होने से सिस्टम पर रहती नजर
घूसकांड के बाद बनाई कमेटी..
7 सितंबर को एसीबी ने 2.20 लाख रुपए की रिश्वत के साथ रणजीत सिंह और कॉलेज प्रतिनिधि महिपाल सहित निलंबित कुलपति रामपाल सिंह को गिरफ्तार किया था। कार्यवाहक कुलपति ओम थानवी ने सम्बद्धता कार्य में सुधार, विकेंद्रीकरण, पारदर्शिता के सुझाव देने के लिए पांच सदस्यी कमेटी बनाई है। प्रो. अशोक नागावत, प्रो. संजय लोढा, प्रो. शिव प्रसाद, डॉ. एस. आशा सहित कुलसचिव संजय माथुर इसमें शामिल हैं।
कई सत्र की सम्बद्धता बकाया!
कई कॉलेज की 2013-14 से 2019-20 तक की सम्बद्धता बकाया है। रामपाल सिंह और उसके दलाल ने कॉलेजों की सम्बद्धता को ही ‘कमाईÓ का टार्गेट बनाया था। रामपाल को पता था, कि यहां आवेदन से लेकर अन्य प्रक्रिया ऑफलाइन हैं। इसका उसने जमकर फायदा उठाया।
रामपाल के वक्त यूं बनाए गए परीक्षा केंद्र
-आवेदक कॉलेज की फीस और आवेदन की फाइल परीक्षा शाखा में परीक्षण होता था। यहां से फाइल परीक्षा नियंत्रक की जांच के बाद कुलपति तक पहुंचती। वह संतुष्ट होने के बाद प्रकरणों को अपने विशेषाधिकार 19/8 में अस्थाई परीक्षा केंद्र का दर्जा देता था।
-सत्र 2019-20 की परीक्षाओं के लिए कॉलेज में नए केंद्र गठन की योजना बनी। विद्यार्थियों की मांग और क्षेत्रीय जरूरत का तर्क दिया गया। कुलपति के स्तर पर परीक्षा समिति गठित की गई। इसमें डीन समेत कॉलेज और विश्वविद्यालय के शिक्षक शामिल किए गए।
-पुराने नियमों को किनारा करते हुए टोंक और नागौर जिले में 30 नए केंद्र बनाए गए। महज एक सत्र की परीक्षाएं कराने वाले कॉलेजों को परीक्षा केंद्र बनाया गया। एक कॉलेज तो ऐसा था, जहां महज छह विद्यार्थी पढ़ते थे।
-परीक्षा केंद्र बनाने, सम्बद्धता और सीटें बढ़ाने में पार्टी (कॉलेज संचालक)की हैसियत देकर रकम फिक्स होती थी। कुलपति के बॉडीगार्ड रणजीत चौधरी (दलाल) के माध्यम से डील होती थी। रकम लाखों रुपए में होती थी।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो