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MDSU: आउटडेट हुए उपकरण, इनसे कराते 21 वीं सदी की पढ़ाई…

locationअजमेरPublished: Nov 27, 2020 10:31:21 am

Submitted by:

raktim tiwari

1991-92 और इसके बाद खरीदे गए कई उपकरण खराब। कई विभागों में 5 से 10 साल में नहीं खरीदे नए उपकरण।

science lab in mdsu

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रक्तिम तिवारी/अजमेर.

महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय का देश के श्रेष्ठ संस्थानों की सूची में स्थान बनाने का सपना पूरा होना मुश्किल है। अव्वल तो गिनती लायक शिक्षक एवं विद्यार्थी की कमी जिम्मेदार है। तिस पर विज्ञान संकाय के विभागों में हाईटेक और नई तकनीकी के उपकरण नहीं है। 25 साल पुराने कई उपकरण आउटडेट हो चुके हैं। फिर भी विवि लैब में इन्हें सजाए बैठा है।
विश्वविद्यालय में जूलॉजी, बॉटनी, प्योर एंड एप्लाइड केमिस्ट्री, माइक्रोबायलॉजी, पर्यावरण विज्ञान और रिमोट सेंसिंग विज्ञान संचालित हैं। इन विभागों की पिछले 30 साल से पृथक लैब हैं। सभी विभागों में राज्य सरकार-यूजीसी एवं राष्ट्रीय उच्च शिक्षा अभियान (रूसा) से मिले बजट से केमिकल, उपकरण और अन्य सामग्री की खरीद-फरोख्त होती है। लेकिन लैब में हाईटेक और नई तकनीक के उपकरणों को लेकर विवि के हालात बेहद दयनीय है।
तकनीक पुरानी, हुए आउटडेट
विज्ञान संकाय की विभिन्न लैब में 1991-92 और इसके बाद के उपकरण रखे हैं। इनमें से कई उपकरणों की तकनीक पुरानी हो चुकी है। नियमानुसार यह आउटडेट हो चुके हैं। कई खराब उपकरणों की मरम्मत भी संभव नहीं है। इसके बावजूद इन उपकरणों से एमएससी के विद्यार्थी-शोधार्थी इन पर कामकाज कर रहे हैं। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप उपकरणों के रिजल्ट सही हैं या नहीं इसकी जांच का माध्यम भी नहीं है।
ये हैं साइंस लैब में उपकरण
-फोटो स्पैक्टोमीटर (वर्ष 1994)
-रोल कैमरा (वर्ष 1995)
-इनक्यूबेटर और ओवन्स (वर्ष 1995-96)
-माइक्रोटोम्स (वर्ष 1993-94)
-डीप फ्रीजर (1997-98)
-क्रिस्टोटेट माइक्रोटोप (1999-2000)
-सेंट्रीफ्यूज मशीन (2001-2002)

यहां तो फ्रिज भी पुराना
बॉटनी विभाग में तो साधारण फ्रिज भी नया नहीं है। यहां 30 साल पुराने फ्रिज की मरम्मत कराकर काम चलाया जा रहा है। जबकि बॉटनी विभाग में एमएससी के विद्यार्थी, शोधार्थी वृहद स्तर पर शोध-पढ़ाई करते हैं।
यूं नहीं मिलते अच्छे प्रोजेक्ट….
यूजीसी और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के कई प्रोजेक्ट में अथाह बजट है। खासतौर पर लाइफ साइंस, विज्ञान, मेडिकल साइंस, आईटी-इंजीनियरिंग, कृषि क्षेत्र में 20 लाख रुपए तक प्रोजेक्ट स्वीकृत हैं। इनमें अत्याधुनिक उपकरण खरीदने की सुविधा मिलती है। इसके लिए फंड फॉर इम्प्रूवमेंट ऑफ इन्फ्रास्ट्रक्चर इन यूनिवर्सिटी (फिस्ट) के तहत देश के यूनिवर्सिटी और कॉलेज को प्रोजेक्ट और उपकरण खरीदने के लिए बजट मिलता है।
ये होते हैं हाईटेक उपकरण (फिस्ट के अनुसार)
अल्ट्रा सेंट्रीफ्यूगिस फेक्स, ऑलिगो न्यूक्लिीटाइड सिंथेसाइजर, एचपीएलसी मॉलिक्यूलर इमेजिंग सिस्टम, स्मॉल और बिग लिक्विड नाइट्रोजन प्लांट, हाई रेज्यूलेशन पाउडर एक्स-रे डिफे्रक्टोमीटर, सिंगल क्रिस्टल एक्स-रे डिफे्रक्टोमीटर, मास स्पेक्टोमीटर, थर्मल एनलाइजर सिस्टम, प्लाज्मा डिपोजिशन सिस्टम, यूनिवर्सल टेस्टिंग मशीन, जीसी-एमएस रमन सिस्टम, इलेक्ट्रॉन माइक्रोब एनेलाइजर, प्रोटीन स्किव्जिंग प्लेटफार्म, टनलिंग माइक्रोस्कोप, वेक्यूम मेल्टिंग सर्फेस और अन्य (विज्ञान के विभिन्न विषयों के लिए उपयोगी)
नेशनल रैंकिंग फे्रमवर्क से दूर…
मानव संसाधन विकास मंत्रालय प्रतिवर्ष नेशन इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फे्रमवर्क के तहत उत्कृष्ट संस्थानों की सूची जारी करता है। इसमें देश के आईआईटी, आईआईएम, नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, उच्च शिक्षा कॉलेज, फार्मेसी, इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेज सहित विश्वविद्यालय शामिल होते हैं। साल 2019-20 की सूची में राजस्थान के केवल दो संस्थान स्थान बना पाए थे। इनमें नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी जोधपुर और बिट्स पिलानी शामिल थे। महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय तो इसके आसपास भी नजर नहीं आया था। इसके पीछे कई शिक्षकों की कमी, उत्कृष्ट कोर्स-प्रोजेक्ट और लैब्स में हाईटेक उपकरणों की कमी जिम्मेदार है।
विभागों के हैं ये हाल
मौजूदा वक्त इतिहास, कॉमर्स, पॉप्यूलेशन स्टडीज, राजनीति विज्ञान, रिमोट सेंसिंग में स्थाई शिक्षक नहीं है। कॉमर्स, प्योर एन्ड एप्लाइड केमिस्ट्री, अर्थशास्त्र, कम्प्यूटर विज्ञान में मात्र एक-एक शिक्षक हैं। जबकि जर्नलिज्म, एज्यूकेशन, लॉ और हिन्दी विभाग में तो शिक्षक भर्ती का मुर्हूत ही नहीं निकला है।
2004 से बी डबल प्लस ग्रेड
यूजीसी ने साल 2004 में विश्वविद्यालय को बी डबल प्लस ग्रेड प्रदान की थी। इस ग्रेडिंग में 16 साल में बदलाव नहीं हुआ है। ए या ए प्लस ग्रेडिंग नहीं मिलने की सबसे बड़ी वजह हाईटेक लैब, प्रोजेक्ट और शिक्षकों कमी है। साल 2017 में आई नैक टीम ने विश्वविद्यालय में लैब में नए उपकरण, शिक्षकों की भर्ती को जरूरी बताया था। विश्वविद्यालय में विदेशी विद्यार्थियों-शोधार्थियों की आवाजाही नहीं होती। देश के श्रेष्ठ संस्थानों (आईआईटी, आईआईएम)के शिक्षकों को बुलाकर लेक्चर नहीं कराए जाते हैं।
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