विश्वविद्यालय ने अक्टूबर 2016 में विभागवार 22 शिक्षकों की भर्ती के लिए आवेदन मांगे थे। इनमें विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, कला और अन्य संकाय के प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और लेक्चरर शामिल हैं। 2017 में जूलॉजी और बॉटनी विभाग में प्रोफेसर की नियुक्ति हो गई। लेकिन हाईकोर्ट में याचिका और सरकार के भर्तियों पर पुनर्विचार करने से 20 शिक्षकों की भर्ती अटक गई।यही हाल अधिकारियों की भर्ती का हुआ। अगस्त 2015 में विश्वविद्यालय ने दो उप कुलसचिव, 1 अतिरिक्त कुलसचिव, 1 शोध निदेशक, 1 पुस्तकालयाध्यक्ष और 1 सहायक पुस्तकालयाध्यक्ष पद के लिए आवेदन मांगे। सरकार से भर्तियों पर तकनीकी आक्षेप लगा तो 2018 में दोबारा आवेदन लिए गए।
हजारों रुपए वसूले विश्वविद्यालय ने लेक्चरर पद के लिए 500, एसोसिएट प्रोफेसर पद के लिए 600 और प्रोफेसर पद के लिए 700 रुपए शुल्क लिया। शिक्षकों के 20 पदों के लिए 50 से ज्यादा आवेदन मिले। अधिकारियों के छह पदों पर 40 से ज्यादा आवेदन मिले। इनकी एवज में करीब 2 लाख रुपए प्राप्त हुए। यह राशि तबसे विवि के खजाने में है। इससे पहले 2007 में भी कुलसचिव, अतिरिक्त कुलसचिव, उप कुलसचिव पद पर आवेदन मांगे गए थे।
यूं अटका है मामला. . . कई विषयों में योग्यतानुसार आवेदन ही नहीं मिले थे। लेकिन विवि ने दोबारा आवेदन लेने के प्रयास नहीं किए। उधर सरकार ने 2019 में भर्तियों में आर्थिक पिछड़ा वर्ग के लिए 10 और एमबीसी के लिए 5 प्रतिशत आरक्षण लागू कर दिया। ऐसे में शिक्षक-अधिकारियों के पदों का नए सिरे से परीक्षण कराना जरूरी हो गया।अ्ब विवि को दोबारा आवेदन फॉर्म भरवाने पड़ सकते हैं।