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अजमेर है एज्यूकेशन हब,टॉप लिस्ट में नहीं कोई इंस्टीट्यूट रक्तिम तिवारी/अजमेर. केंद्रीय और राज्य स्तरीय शिक्षण संस्थानों वाले अजमेर की शैक्षिक चमक धुंधली पड़ रही है। वैज्ञानिक डॉ. सी.वी.रमन, पूर्व राष्ट्रपति जाकिर हुसैन, डॉ. शंकरदयाल शर्मा, जेटीएम गिब्सन जैसे विख्यात शिक्षकों-शख्सियतों ने यहां सेवाएं दीं। इसके बावजूद मानवसंसाधन विकास मंत्रालय की रैंकिंग में शहर के संस्थान जगह नहीं बना सके। यह शैक्षिक पिछड़ेपन और नवाचार की कमी दर्शाता है।
अजमेर है एज्यूकेशन हब,टॉप लिस्ट में नहीं कोई इंस्टीट्यूट रक्तिम तिवारी/अजमेर. केंद्रीय और राज्य स्तरीय शिक्षण संस्थानों वाले अजमेर की शैक्षिक चमक धुंधली पड़ रही है। वैज्ञानिक डॉ. सी.वी.रमन, पूर्व राष्ट्रपति जाकिर हुसैन, डॉ. शंकरदयाल शर्मा, जेटीएम गिब्सन जैसे विख्यात शिक्षकों-शख्सियतों ने यहां सेवाएं दीं। इसके बावजूद मानवसंसाधन विकास मंत्रालय की रैंकिंग में शहर के संस्थान जगह नहीं बना सके। यह शैक्षिक पिछड़ेपन और नवाचार की कमी दर्शाता है।
अजमेर शैक्षिक दृष्टि से राजस्थान और भारत में सिरमौर रहा है। वर्ष 1836 में स्थापित राजकीय महाविद्यालय, 1875 में स्थापित मेयो कॉलेज, 1987 में स्थापित महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय, 2009 में केंद्रीय विश्वविद्यालय खुला। प्रख्यात मिशनरी स्कूल, सरकारी स्कूल, मेडिकल, इंजीनियरिंग कॉलेज स्थापित हुए। इनसे पढ़कर निकले छात्र-छात्राओं ने देश- दुनिया में परचम लहराया। लेकिन पिछले 20-25 साल में हालात बिल्कुल बदल गए हैं।
हमारे संस्थानों में कमियों की भरमार…
-सिर्फ 18 शिक्षकों के भरोसे संचालित मदस विश्वविद्यालय, विश्वस्तरीय शोध, केंद्र/राज्य सरकार की योजनाओं में भागीदारी नहीं।
-सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज में नहीं कोई प्रोफेसर। स्टार्ट अप, मेक इन इंडिया और तकनीकी नवाचार में भागीदारी नहीं।
-लॉ कॉलेज को नहीं बीसीआई से स्थाई सम्बद्धता। लॉ से जुड़े राष्ट्रीय/अंतर्राष्ट्रीय इंटीग्रेटेड कोर्स, शोध में कमी।
-50 साल पुराने संस्कृत कॉलेज में गिनती के शिक्षक। संस्कृत में शोध, नए पाठ्यक्रमों, राष्ट्रीय/अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार नहीं।
-जीसीए और अन्य कॉलेज में कला, वाणिज्य, विज्ञान के घिसे-पिटे कोर्स संचालित। उद्यमियों-कम्पनियों की आवश्यकता अनुसार नहीं डिजाइन होते कोर्स।
-सिर्फ 18 शिक्षकों के भरोसे संचालित मदस विश्वविद्यालय, विश्वस्तरीय शोध, केंद्र/राज्य सरकार की योजनाओं में भागीदारी नहीं।
-सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज में नहीं कोई प्रोफेसर। स्टार्ट अप, मेक इन इंडिया और तकनीकी नवाचार में भागीदारी नहीं।
-लॉ कॉलेज को नहीं बीसीआई से स्थाई सम्बद्धता। लॉ से जुड़े राष्ट्रीय/अंतर्राष्ट्रीय इंटीग्रेटेड कोर्स, शोध में कमी।
-50 साल पुराने संस्कृत कॉलेज में गिनती के शिक्षक। संस्कृत में शोध, नए पाठ्यक्रमों, राष्ट्रीय/अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार नहीं।
-जीसीए और अन्य कॉलेज में कला, वाणिज्य, विज्ञान के घिसे-पिटे कोर्स संचालित। उद्यमियों-कम्पनियों की आवश्यकता अनुसार नहीं डिजाइन होते कोर्स।