रासासिंह अपने सहज और सरल स्वभाव के लिए जाने जाते थे। वे छोटे बच्चों, युवाओं अथवा बुजुर्गों के सहज भाव से पैर छूते थे। इस आदत ने ही उन्हें लोकप्रिय नेता बनाया। किसी भी शैक्षिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक समारोह, बाजार, मोहल्ले में वे लोगों से मिलने पर तत्काल पैर छूते थे। बदले में आशीर्वाद पाकर प्रसन्नता का अनुभव करते थे।पैरों में रख देते थे पगड़ी सांसद होने के साथ-साथ रासासिंह में एक खूबी और थी। वे लोकसभा चुनाव अथवा किसी भी अहम कार्यक्रम में अपनी सिर की पगड़ी उताकर किसी भी व्यक्ति के पैरों में रख देते थे। साथ ही इसका अभिप्राय समझाते हुए कहते थे….यह मेरी नहीं आपकी भी पगड़ी है….। इसकी लाज रखना आपके हाथ में है।
शिक्षक होने के कारण रावत में धारा प्रवाह भाषण देने की अद्भुत कला थी। वे अक्सर बोलते थे….जैसा खाओगे अन्न, वैसा रहेगा मन…, जैसा पियोगे पाणी, वैसी बोलेगे वाणी…, जैसा करोगे विचार, वैसा बनेगा व्यवहार….. जैसे वाक्य अक्सर बोलते थे। उनकी भाषण कला के भाजपा के साथ-साथ कई कांग्रेस नेता भी मुरीद थे। रावत का यह अंदाज सबको पसंद आता था।
रासासिंह का आर्य समाज से गहरा जुड़ा था। आर्य समाज के प्रधान, रेडक्रॉस सोसायटी के अध्यक्ष, दयानंद बाल सदन सहित आर्य समाज की संस्थाओं से जुड़े रहे। उनकी आर्य समाज के कार्यक्रमों, ऋषि उद्यान में वार्षिक मेला, साप्ताहिक यज्ञ और अन्य कार्यक्रमों में भागीदारी रहती थीठ। इसके अलावा वे दो बार भाजपा के जिलाध्यक्ष भी रहे।