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प्रकृति: खिदमत से बचेंगे प्रवासी पक्षी

locationअजमेरPublished: Nov 12, 2021 09:34:48 pm

सांभर में परिंदों की मौत से सबक लेकर कार्ययोजना पर हो रहा कामउजड़ रहा पक्षियों का आसरा

प्रकृति: खिदमत से बचेंगे प्रवासी पक्षी

प्रकृति: खिदमत से बचेंगे प्रवासी पक्षी

रमेश शर्मा/ सवाईमाधोपुर. प्रकृति के रक्षक प्रवासी पक्षियों के संरक्षण और ईको सिस्टम को बचाने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कार्ययोजना बनाकर काम हो रहा है। दो साल पहले जयपुर की सांभर झील में हजारों प्रवासी पक्षियों की मौत के बाद वन एवं पर्यावरण मंत्रालय इसे लेकर गम्भीर हुआ है। इसी संदर्भ में हाल ही वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव की मौजूदगी में यूरोप और एशिया के उड़ान मार्ग वाले तीस देशों से शीतकाल में भारत आने वाले प्रवासी पक्षियों के मार्ग को निर्बाध बनाने, इनकी संख्या में निरंतर आ रही गिरावट को रोकने और आश्रय स्थलों को संरक्षित करने पर चर्चा भी हुई।
सुदूर प्रदेशों से आने वाले प्रवासी पक्षियों का मरुधरा पर आना संस्कृति का हिस्सा है। राजस्थान इनके लिए अनुकूल और पसंदीदा क्षेत्र है। इसमें सांभर झील भी प्रमुख है। दो साल पहले सांभर में करीब 25 प्रजातियों के हजारों पक्षियों की मौत हुई थी। इनमें रूडी शेल्डक, रूडी टर्नस्टोन, नॉर्थन शोवेलेर, ब्लैकविंग्ड स्टिल्ट और कॉमन कूट प्रजातियों के पक्षी थे। इस पक्षी त्रासदी के बाद इनकी सुरक्षा को लेकर काफी चिंता देखी गई थी। इससे सबक लेते हुए वेटलैंड यानी नमभूमि के संरक्षण पर जोर दिया जा रहा है। पक्षियों का पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित रखने में अहम योगदान है। वेटलैंड खत्म होने और बढ़ते प्रदूषण के कारण प्रवासी पक्षियों का ठहराव कम हो रहा है। इससे कई प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं।
नमभूमि क्यों जरूरी
जैव विविधता को सुरक्षित रखने में नमभूमि बहुत महत्वपूर्ण है। यही शीतकालीन पक्षियों और विभिन्न जीव-जंतुओं का आश्रय स्थल होती हैं। मछलियों और अनेक जंतुओं के प्रजनन के लिए भी यह भूमि उपयुक्त होती है। झील, नदी या बड़े तालाबों के किनारे के दलदली क्षेत्र को नमभूमि या वेटलैंड कहते हैं। यहां भरपूर नमी होती है। प्रवासी पक्षियों के इस भूमि पर डेरा डालने से वातावरण भी प्रदूषण मुक्त होता है। आबादी बढऩे के साथ हरियाली और लगातार अतिक्रमण आदि से वेटलैंड खत्म होने से पक्षियों का आसरा भी उजड़ रहा है।
पर्याप्त भोजन
राजस्थान के तालाबों और झील में बहुतायत पाए जाने वाली स्पाईरोलिना ग्रीन एल्गी (शैवाल या काई) इनका पसंदीदा भोजन है। यह प्रचुर मात्रा में यहां उपलब्ध रहता है। इससे फ्लेमिंगो के कई झुंड यहां स्थाई प्रवास भी करते देखे गए हैं।
उड़ान मार्ग
प्रवासी पक्षियों के दुनिया में कुल 9 उड़ान मार्ग हैं। मध्य एशियाई उड़ान मार्ग इनमें से एक है, जो करीब 30 देशों की सीमा को कवर करता है। यूरोप, मध्य-पश्चिमी एशिया, रूस, साइबेरिया, चीन और मंगोलिया के ऊंचाई पर स्थित प्रदेशों से हजारों पक्षी शीत प्रवास पर भारत आते हैं। मध्य एशियाई उड़ान मार्ग वाले 90 फीसद पक्षियों का ठहराव या प्रजनन क्षेत्र अकेला भारत ही है।
प्रवासी पक्षियों की आबादी में कमी का समाधान खोजने, सिमटती नमभूमि (वेटलैंड) और इससे प्रवासी पक्षियों के खत्म होते आश्रय स्थलों को बचाए रखने के लिए भारत प्रवासी पक्षियों के संरक्षण के अंतरराष्ट्रीय एक्शन प्लान की अगुवाई कर रहा है। इनके उड़ान मार्ग को निर्बाध बनाने के लिए भारत तीस देशों के साथ मिलकर काम कर रहा है।
राजस्थान में लोकगीत
प्रवासी पक्षियों का कलरव पर यहां कई लोकगीत भी बने हुए हैं। डेमोसिल क्रेन को स्थानीय भाषा में कुरजां कहा जाता है। इसी तरह साइबेरियन सारस फ्लेमिंगो कहा जाता है। राजस्थान का केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी उद्यान प्रवासी पक्षियों के लिए विश्वविख्यात है। यहां करीब 350 प्रजातियों के पक्षी आते हैं। इसी तरह जयपुर के सांभर, बाड़मेर के पचपदरा, नागौर की डीडवाना जैसी खारे पानी की झीलें, धौलपुर, सवाईमाधोपुर और करौली जिलों में चम्बल के तटवर्ती क्षेत्र और चूरू के तालछापर भी प्रवासी पक्षियों के प्रवास स्थल हैं। पश्चिमी राजस्थान के बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर, नागौर के अलावा उदयपुर, अलवर एवं अजमेर आदि के वेटलैण्ड में बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षियों का डेरा दिखाई देता है।
फैक्ट फाइल
11000 पक्षियों की प्रजातियां हैं दुनिया में
2000 हजार से अधिक प्रजातियां प्रवास करती हैं
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में शीतकाल में ज्यादातर पक्षी साइबेरिया, मंगोलिया व मध्य एशिया की तरफ से आते हैं। यहां पर करीब 350 पक्षी प्रजातियां प्रवास करती हैं। हालांकि ये कुछ ही दिन ठहरते हैं। पर्यटक एक दिन में 100-150 प्रजाति के पक्षियों को निहार सकते हैं। इनकी खास खूबसूरती है। फिलहाल आसपास के वैटलेंड में पक्षी ठहरे हुए हैं। प्रवासी पक्षियों के संरक्षण के लिए वेटलैंड का संरक्षण जरूरी है। सर्दी बढऩे के साथ ही घना में रौनक छाने लगेगी।
अबरार खां भोलू, पूर्व रेंजर केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान

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