चांद देखने के लिए सोमवार शाम हिलाल कमेटी की बैठक दरगाह कमेटी कार्यालय में हुई। इसमें कहीं से भी चांद नजर आने की सूचना नहीं मिली। इस हिसाब से बुधवार को चांद की एक तारीख होगी। मंगलवार शाम को बड़े की पीर की पहाड़ी से तोप दाग कर और दरगाह परिसर में शादियाने व नगाड़े बजाकर चांद की घोषणा की जाएगी।
जन्नती दरवाजे से गुजरने की मची होड़ ख्वाजा साहब की दरगाह में उर्स के मौके पर खोले गए जन्नती दरवाजे से गुजर कर जियारत करने की सोमवार को दिनभर अकीदतमंद में होड़ मची रही। जन्नती दरवाजा सोमवार तडक़े खोला गया था लेकिन चांद नहीं दिखने पर रात को फिर से बंद कर दिया गया। मंगलवार तडक़े 4.30 बजे यह दरवाजा फिर से खोल दिया गया। उर्स में यह दरवाजा छह दिन खुला रहेगा।
हैरत अंगेज करतब दिखाते दरगाह पहुंचे मस्त कलंदर सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलने से इनके पांवों में भले ही छाले पड़ गए लेकिन आस्था में कहीं कोई कमी नहीं है। ख्वाजा साहब के उर्स में शिरकत करने आए सैकड़ों मस्त कलंदर सोमवार को जब अजमेर पहुंचे तो जज्बे से लबरेज थे। उनके हैरत अंगेज कारनामों ने हर किसी को दांतों तले अंगुली दबाने पर मजबूर कर दिया।
हाथों में छडि़यां (निशान) लिए और हैरत अंगेज करतब दिखाते हुए कलंदर सोमवार शाम जुलूस के रूप में ख्वाजा साहब की दरगाह पहुंचे। इस दौरान चाकू की नोंक से आंखों की पुतली निकालना, तलवारबाजी, शरीर पर कोड़े बरसाना, जीभ में से मोटी सूई आर-पार करना, गाल के बीच से तलवार निकालना जैसे कई हैरतअंगेज कारनामे दिखा कर हर किसी को भौंचक कर दिया। मलंगों का जुलूस ऋषि घाटी स्थित उस्मानी चिल्ले से अपराह्न ४ बजे रवाना हुआ। बैंड-बाजे और ढोल ढमाके के साथ जुलूस गंज, देहलीगेट व धानमंडी होते हुए दरगाह पहुंचा जहां उन्होंने छडि़यां पेश की।
हाथों में छडि़यां (निशान) लिए और हैरत अंगेज करतब दिखाते हुए कलंदर सोमवार शाम जुलूस के रूप में ख्वाजा साहब की दरगाह पहुंचे। इस दौरान चाकू की नोंक से आंखों की पुतली निकालना, तलवारबाजी, शरीर पर कोड़े बरसाना, जीभ में से मोटी सूई आर-पार करना, गाल के बीच से तलवार निकालना जैसे कई हैरतअंगेज कारनामे दिखा कर हर किसी को भौंचक कर दिया। मलंगों का जुलूस ऋषि घाटी स्थित उस्मानी चिल्ले से अपराह्न ४ बजे रवाना हुआ। बैंड-बाजे और ढोल ढमाके के साथ जुलूस गंज, देहलीगेट व धानमंडी होते हुए दरगाह पहुंचा जहां उन्होंने छडि़यां पेश की।
सालों पुरानी रस्म
कलंदरों की ओर से उर्स में छडि़यां पेश करने की परम्परा वर्षों पुरानी है। यह कलंदर दरगाह में छडि़यां पेश कर उर्स की शुरुआत का पैगाम देते हैं। इस बार भी महरौली से सैकड़ों कलंदर पैदल चलकर अजमेर पहुंचे हैं।
कलंदरों की ओर से उर्स में छडि़यां पेश करने की परम्परा वर्षों पुरानी है। यह कलंदर दरगाह में छडि़यां पेश कर उर्स की शुरुआत का पैगाम देते हैं। इस बार भी महरौली से सैकड़ों कलंदर पैदल चलकर अजमेर पहुंचे हैं।