अजमेर

हिंदी की दुर्गति…नहीं हैं यहां पढ़ाने वाले गुरू, शिष्य भी नहीं पढऩा मातृभाषा

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अजमेरSep 13, 2018 / 07:05 pm

raktim tiwari

hindi language in trouble

रक्तिम तिवारी/अजमेर।
भले ही हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा हासिल है। सामान्य बोलचाल और कामकाज में हम हिंदी इस्तेमाल करते हैं। लेकिन उच्च और तकनीकी शिक्षण संस्थाओं में हिंदी को महज ‘ढोया ’ जा रहा है। सरकार और संस्थानों को इसकी कतई परवाह नहीं है। इसके चलते कॉलेज-विश्वविद्यालयों में नौजवानों का हिंदी पठन-पाठन में रुझान घट रहा है।
राज्यपाल कल्याण सिंह के निर्देश पर महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय में साल 2015 से हिंदी विभाग प्रारंभ हुआ। तीन साल से विभाग अपनी पहचान कायम नहीं कर पाया है। सिर्फ दिखाने के लिए कामचलाऊ शिक्षक कक्षाएं लेते हैं। विद्यार्थियों की संख्या भी 10-12 तक ही सिमटी हुई है। ना सरकार ना विश्वविद्यालय ने विभाग में स्थाई प्रोफेसर, रीडर अथवा लेक्चरर की नियुक्ति करना मुनासिब समझा है। विभाग की तरफ से कोई राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन, कार्यशाला, विद्यार्थियों की प्रतियोगिता नहीं होती है।
नियमित नहीं हो रही भर्तियां

सरकार और राजस्थान लोक सेवा आयोग कॉलेज में हिंदी व्याख्याताओं की नियमित भर्तियां नहीं कर रहे। साल 2014 की कॉलेज व्याख्याता हिंदी भर्ती के साक्षात्कार और परिणाम पिछले दिनों जारी हुए हैं। यही वजह है, कि विद्यार्थियों-युवाओं का हिंदी भाषा में कॅरियर बनाने के प्रति रुझान घट रहा है। स्नातक और स्नातकोत्तर कॉलेज में भी हिंदी भाषा के हाल खराब होने लगे हैं। प्रथम वर्ष में तो विद्यार्थी सिर्फ हिंदी में पास होने के लिए किताब पढ़ते हैं।
घट रहे हैं प्रवेश

विभिन्न कॉलेज में स्नातकोत्तर स्तर पर संचालित हिंदी कोर्स में दाखिले कम रहे हैं। अजमेर के सम्राट पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय जैसे कुछेक संस्थाओं को छोडकऱ अधिकांश में युवाओं का रुझान हिंदी में एमए करने की तरफ घट रहा है। विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के हाल भी खराब हैं। शिक्षक, भाषा प्रयोगशाला और अन्य संसाधन नहीं होने से विद्यार्थियों की प्रवेश में रुचि कम हो रही है।
तकनीक कॉलेज में अंग्रेजी की बयार

प्रदेश के तकनीकी शिक्षण संस्थानों में अंग्रेजी की बयार बहती है। आरटीयू, इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम के ज्यादातर कोर्स अंग्रेजी में है। इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रथम वर्ष में कम्यूनिकेशन स्किल के लिए अंग्रेजी पढ़ाई जाती है, लेकिन हिंदी भाषा का शिक्षण नहीं होता। इंजीनियरिंग कोर्स में विद्यार्थियों के अंग्रेजी तकनीकी शब्दों के समझने में आसानी, कम्प्यूटर के प्रयोग और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में अंग्रेजी के वर्चस्व के चलते यहां हिंदी पिछड़ी हुई है। इंजीनियरिंग कॉलेज में हिंदी को नियमित नहीं पढ़ाया जा राह है। ऐसा तब है जबकि फेसबुक, वाट्सएप और कई वेबसाइट हिंदी में कामकाज कर रही हैं।
हिंदी से निकली कई बोलियां

हिंदी भाषा कई बोलियों की जनक मानी जाती है। इनमें मारवाड़ी, कनौजी, अवधी, बुंदेली, भोजपुरी, छत्तीसगढ़ी और अन्य शामिल हैं। उर्दू और हिंदी भाषा में तो सदियों का संबंध हैं। इसके अलावा पड़ौसी मुल्क नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश में भी हिंदी बोली जाती है। जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन सहि कई देशों में स्कूल-कॉलेज-यूनिवर्सिटी में हिंदी नियमित पढ़ाई जा रही है।
हिंदी भाषा…फैक्ट फाइल
-देश की मातृभाषा है हिंदी
-देश में करीब 1 करोड़ लोग बोलते हैं हिंदी
-देवनागरी लिपि है हिंदी का प्रमुख आधार


विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग खोलने का मकसद ही राष्ट्रभाषा को बढ़ावा देना है। केवल हिंदी में पास होने की प्रवृत्ति में बदलाव लाना होगा। विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग को सशक्त बनाने की जरूरत है। इसमें व्याख्यान, काव्य गोष्ठी और अन्य कार्यक्रम नियमित होने चाहिए। यहां नियमित गतिविधियां और प्रवेश में बढ़ोतरी के प्रयास करेंगे।
प्रो. कैलाश सोडाणी, कुलपति मदस विश्वविद्यालय

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