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Health: ग्रामीण सामुदायिक स्‍वास्‍थ्‍य केन्‍द्रों में 80 फीसदी विशेषज्ञ डॉक्‍टर नहीं

locationअजमेरPublished: Dec 17, 2021 07:01:02 pm

स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं की बदहाल तस्‍वीर

Health: ग्रामीण सामुदायिक स्‍वास्‍थ्‍य केन्‍द्रों में 80 फीसदी विशेषज्ञ डॉक्‍टर नहीं

Health: ग्रामीण सामुदायिक स्‍वास्‍थ्‍य केन्‍द्रों में 80 फीसदी विशेषज्ञ डॉक्‍टर नहीं

रमेश शर्मा
अजमेर. अगर आप यह धारणा बना लेते हैं कि समय और विकास के सापेक्ष चिकित्‍सा सुविधाएं भी बेहतर और उन्‍नत होती हैं तो आप सरासर गलत हैं। स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं को लेकर राजस्‍थान सरकार भले ही खूबसूरत दावे करे केन्‍द्र सरकार की ग्रामीण स्‍वास्‍थ्‍य सांख्यिकी रिपोर्ट के आंकड़े उसकी किरकिरी कर रहे हैं। स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाओं के पैमाने पर संयुक्‍त राष्‍ट्र के सतत विकास लक्ष्‍यों में राजस्‍थान कहीं नहीं ठहरता। पिछले पन्‍द्रह वर्षो में स्थिति बेहतर होने की बजाए बिगड़ी है।
ग्रामीण अंचल में सामुदायिक स्‍वास्‍थ्‍य केन्‍द्र स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं की बड़ी बुनियाद हैं। सिर्फ इसी पर बात करें तो दशा बहुत ही बदहाल है। इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टेंडर्ड (आइपीएचएस) के मानकों के अनुसार हर सीएचसी में चार विशेषज्ञ (सर्जन, प्रसूति-स्त्रीरोग विशेषज्ञ, बालरोग विशेषज्ञ और चिकित्सा विशेषज्ञ यानी फिजीशियन) होने चाहिए। सीएचसी पर गंभीर बीमारियों के लिए विशेषज्ञ चिकित्‍सकों के 80 फीसदी पद खाली हैं। सरकार ने दिल खोलकर पद स्‍वीकृत किए और खूब वाहवाही पाई है। असल में ऐसे अस्‍पतालों की कमी नहीं है जहां अब तक कोई विशेषज्ञ गया ही नहीं। कई में चिकित्‍सक आए सालों गुजर गए। स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं पर भारी भरकम बजट खर्च करने के सरकारी दावों के उलट चिकित्‍सक नहीं होने से मरीज बेहाल हैं। इमरजेंसी में मरीजों को जिला अस्‍पताल में रेफर करने के अलावा कोई चारा नहीं है। उनके भी हालात अच्‍छे नहीं हैं। ऐसे में मजबूरी में लोग प्राइवेट अस्‍पतालों पर निर्भर हैं।
एक गैर सरकारी संगठन से जुड़ी बीकानेर की आशा नैनवाल बताती हैं, ग्रामीण क्षेत्रों में स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाओं की बजाए मुसीबतों अधिक हैं। मसलन डिलीवरी के लिए ज्‍यादातर लोग प्राइवेट अस्‍पतालों के भरोसे हैं। गायनेकोलोजिस्‍ट नहीं होने से सामान्‍य चिकित्‍सक या अप्रशिक्षित स्‍टाफ से प्रसव करवाने से मातृ और शिशु के जीवन को खतरा रहता है। यही वजह है कि राजस्‍थान में मातृ और शिशु मृत्‍यु दर राष्‍ट्रीय दर से कहीं ज्‍यादा है। साथ ही कई तरह की जटिलताओं और गड़बडि़यों का खतरा रहता है। शिशु रोग विशेषज्ञ नहीं होने से बच्‍चों की बीमारियां और कुपोषण बढ़ता जा रहा है।
लुभावने पद
सीएम गहलोत ने वर्ष 2021-22 की बजट घोषणा में 50 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों सामुदायिक स्वास्थ्य केन्दों में क्रमोन्नत करने की लुभावनी घोषणा की थी। कोविड के बाद जुलाई में क्रमोन्नत सीएचसी में कनिष्ठ विशेषज्ञ के 100 पद, वरिष्ठ चिकित्साधिकारी के 48, चिकित्साधिकारी के 46, नर्स श्रेणी प्रथम के 4, द्वितीय के 241, फार्मासिस्ट के 11, सहायक रेडियोग्राफर के 50, लैब टेक्नीशियन के 3 समेत कुल 733 नवीन पद सृजित किए। भले ही क्रमोन्‍नत के साथ अतिरिक्त पदों का सृजन किया है, लेकिन विशेषज्ञ चिकित्‍सक मरीजों को आवश्‍यक रूप से देखें इसकी कोई गारंटी नहीं है। विशेषज्ञों के पद पहले ही वर्षो से खाली हैं। इसलिए ये पद भी लुभावने हैं। इसकी बानगी देखिए कि धौलपुर के सैंपऊ उपखंड क्षेत्र के इंदौली गांव के राजकीय पीएचसी का उद्घाटन करीब ढाई वर्ष पहले हो गया। यहां अबतक कोई स्टाफ तैनात नहीं करने से ताला लगा है। ग्रामीण चिकित्सा सुविधा के मोहताज बने हुए हैं।
इनका कहना है...
विशेषज्ञ चिकित्‍सक सीएचसी की बात तो दूर, जिला अस्‍पतालों में ही पूरे नहीं हैं। सप्‍ताह में दो-तीन दिन जिला अस्‍पताल के विशेषज्ञों को आसपास के सामुदायिक स्‍वास्‍थ्‍य केन्‍द्रों पर लगाकर जनता को राहत देनी चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों में स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाएं ठीक करने के लिए सबसे पहले पीएचसी को मजबूत करना जरूरी है। प्रथम ग्रेड एएनएम को सामान्‍य बीमारियों की दवाइयां लिखने के अधिकार दिए जाएं।
– राजकुमार दक, पब्लिक हेल्‍थ क्षेत्र में कार्यरत सामाजिक कार्यकर्ता, राजसमंद
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर निर्धारित मापदंडों के तहत विशेषज्ञों के पद स्वीकृत होते हैं। कमी लंबे समय से चल रही है। सरकार पूर्ति का प्रयास करती है, लेकिन यह आनन-फानन में पूरी नहीं हो सकती है। जो नए डॉक्टर आते हैं, ज्‍यादातर जिला मुख्यालय या अपनी सुविधा के हिसाब से जॉइन करते हैं। ऐसे में संबंधित सीएचसी के मरीज विशेषज्ञ वाले अस्पताल में इलाज के लिए पहुंचते हैं।
डॉ. मोहकम सिंह, पूर्व पीएमओ आरबीएम अस्पताल भरतपुर
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