अजमेर जिले के नसीराबाद शहर का लगभग 90 फीसदी हिस्सा छावनी बोर्ड के अधीन है। आजादी के बाद भी यहां की जनता अपने मकानों व दुकानों के मालिकाना के इंतजार में है। किसी तरह का निर्माण भी छावनी बोर्ड की अनुसंसा के ही संभव है। वर्ष 1947 में जिस क्षेत्रफल में 10 हजार की जनसंख्या निवास कर रही थी उसी क्षेत्रफल में वर्तमान में 35 हजार की जनसंख्या निवास कर रही है। छावनी परिषद (बोर्ड) रक्षा मंत्रालय से संचालित है। यही वजह है कि देश की सुरक्षा से जुड़े इस मामले में कभी विरोध मुखर नहीं हुआ।
मकान की रजिस्ट्री भी नहीं, मलबे के ढेर पर नसीराबाद नसीराबाद निवासी बालकिशन के अनुसार छावनी बोर्ड के अधीन क्षेत्र में रहने वाले करीब 35 हजार से अधिक लोगों के मकानों की रजिस्ट्री भी खुद के नाम नहीं है। एक करोड़ के मकान की कीमत बैंक व सरकार की नजर में एक पैसा भी नहीं है। जमीन 99 साल लीज भी है। मकान मोरगेज भी नहीं रख सकते हैं।
मास्टर प्लान भी नहीं बना आज तक नसीराबाद छावनी बोर्ड निवाी अजय गौड़ के अनुसार नसीराबाद छावनी बोर्ड के अधीन क्षेत्र का आज तक कोई मास्टरप्लान नहीं बना। सीवरेज की कोई व्यवस्था नहीं है। नसीराबाद छावनी बोर्ड में बीपीएल, एपीएल परिवारों को आवास योजना का लाभ नहीं मिल पाया है। उज्ज्वला योजना में फ्री गैस कनेक्शन भी नहीं मिल पाए। अगर अस्पताल, स्कूल बनाना चाहें तो इनके लिए जमीन उपलब्ध नहीं है।
नगरपालिका क्षेत्र में९५७ मतदाता हैं नगरपालिका के वार्डों में ६२ छावनी थी देश में आजादी के बादनई नगरपालिका में आबादी ही नहींपूर्ववर्ती वसुंधरा सरकार ने वर्ष 2016 में नसीराबाद में नगरपालिका की घोषणा कर दी मगर छह माह में पालिका चुनाव नहीं करवा पाई। अब कांग्रेस सरकार ने पालिका चुनाव की घोषणा कर दी मगर पालिका क्षेत्र में आबादी ही नहीं है। यहां बनाए 20 वार्डों में मात्र 957 मतदाता है। जबकि छावनी बोर्ड को इसमें शामिल नहीं किया गया है। इसका निर्णय रक्षा मंत्रालय की ओर से होना है। विधायक व सांसद कोटे की राशि भी बोर्ड की अनुशंसा पर खर्चबोर्ड अधिकारियों के मुताबिक विधायक मद एवं सांसद कोटे की राशि से होने वाले विकास कार्य निर्धारित श्रेणी की जमीन पर छावनी बोर्ड ही करवाता है काम। बोर्ड ही विकास कार्य करवाता है। कुछ जमीन की श्रेणी ऐसी हैं जहां कार्य करवाना ही निषेध है।
इनका कहना है नसीराबाद छावनी बोर्ड एरिया से बाहर नगरपालिका बनाई गई है। छावनी बोर्ड ऑटोनोमस बॉडी है। अगर विधायक व सांसद फंड देना चाहते हैं तो बोर्ड को दे सकते हैं। बोर्ड ही निर्धारित श्रेणी की जमीन में विकास करवा सकता है। आर्मी पजीशन की श्रेणी में ये कोई काम नहीं किए जा सकते हैं। छावनी बोर्ड क्षेत्र की अधिकांश प्रॉपर्टी भारत सरकार की लीज पर मिली हुई है। जमीन भारत सरकार की है, संरचना के मालिक से नागरिक। भारत सरकार की जमीन गिरवी कैसे रख सकते हैं बैंक। अगर राज्य शासन या प्राइवेट भूमि है तो उस पर लोन ले सकते हैं।
अरविन्द कुमार नेमा, अधिशासी अधिकारी, छावनी बोर्ड नसीराबाद