बिठूर के पचमता गांव की पहाडिय़ों में सुबह एक घायल पैंथर के विचरण करने तथा दहाडऩे की आवाज सुनकर ग्रामीण दहशत में आ गए थे। सूचना पर वनकर्मी मौके पर पहुंचे। इस दौरान घायल पैंथर पचमता की पहाडिय़ों में विलायती बबूल में दहाड़ते हुए वितरण कर रहा था।
इस पर वन विभाग की टीम ने पैंथर को ट्रेंकुलाइजर गन की मदद से बेहोश कर पकडऩे का प्रयास किया। लेकिन घायल पैंथर खुद ही अचानक गश खाकर निढाल हो गया। कुछ ही देर में उसकी मृत्यु हो गई।
मृत पैंथर के अगले पंजे में चोट का निशान मिला जो संभवत: किसी धारदार हथियार के संपर्क में आने अथवा पत्थर की चोट से हो सकता है। उसकी कमर पर भी गहरा घाव बताते हैं। प्रथम दृष्टया पैंथर के बीमार होने या इंफेक्शन से दम तोडऩे की आशंका जताई गई है।
पहले भी मिल चुके पैंथर ब्यावर-अजमेर क्षेत्र में कई बार पैंथर मिल चुके हैं। ब्यावर के राजियवास-जवाजा, टॉडगढ़ रावली क्षेत्र में अक्सर ग्रामीण क्षेत्रों में पैंथर नजर आते रहे हैं। इसी तरह अजमेर ? में तारागढ़-पुष्कर क्षेत्र, अजयसर, हाथीखेड़ा और आसापास के क्षेत्रों में पैंथर दिखाई दिए हैं। वन कर्मियों ने कई बार पिंजरा लगाकर इनको पकडऩे की कोशिश भी की। लेकिन यह यदा-कदा ही वन विभाग के हाथ आए।
वन्य जीव गणना में जीरो… वन विभाग प्रतिवर्ष मई-जून में वन्य जीव प्राणियों की गणना कराता है। इसके तहत अजमेर सहित राज्य के विभिन्न जिलों में झील, तालाबों और बांधों के निकट वनकर्मी मचान बनाकर जीव-जंतुओं पर नजर रखते हैं। पूर्णिमा की रात्रि को वो वन्य जीवों की गणना करते हैं। हैरत की बात है, कि ग्रामीण और शहरी इलाकों में लोग कई बार पैंथर देखते रहे हैं, इसके बावजूद वन विभाग की गणना में हमेशा पैंथन के कॉलम में जीरो लिखा जाता है।