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अजमेर

बाल दिवस : जिम्मेदारियों के बोझ तले दबता बचपन

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5 years ago
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अजमेर. देश में प्रतिवर्ष 14 नवंबर को बाल दिवस मनाया जाता है। इस दिन बच्चों के प्रिय चाचा नेहरू का जन्मदिन होता है। इस अवसर पर कई कार्यक्रम व प्रतियोगिताएं होते हैं जिनमें बचपन की अहमियत बताई जाती है। बच्चों को उनके अधिकार व कत्र्तव्य के प्रति जागरूक रहने के लिए कहा जाता है। ये सही है कि बचपन जिम्मेदारियों का बोझ उठाने के लिए नहीं बल्कि हर गम से बेगाना होकर मौज मस्ती , खेलकूद और पढऩे का समय होता है। लेकिन देश की भावी पीढ़ी को इन सब के बजाय घर की जिम्मेदारियों का बोझ उठाने के लिए खटना पढ़ता है। दरगाह क्षेत्र में बहुत से किशोर वय के बच्चे देखे जा सकते हैं जो अपने परिवार की आर्थिक तंगी के चलते माला व चूडिय़ां बेचते हैं। दिन भर दिहाड़ी मजदूर की तरह काम करते करते इनके चेहरे से मासूमियत गायब हो चुकी है। हालत ये है कि इन बच्चों के लिए सरकार , प्रशासन और बच्चों के प्रति खुद को समर्पित बताने वाले संगठन भी कुछ नहीं करते।

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अजमेर. देश में प्रतिवर्ष 14 नवंबर को बाल दिवस मनाया जाता है। इस दिन बच्चों के प्रिय चाचा नेहरू का जन्मदिन होता है। इस अवसर पर कई कार्यक्रम व प्रतियोगिताएं होते हैं जिनमें बचपन की अहमियत बताई जाती है। बच्चों को उनके अधिकार व कत्र्तव्य के प्रति जागरूक रहने के लिए कहा जाता है। ये सही है कि बचपन जिम्मेदारियों का बोझ उठाने के लिए नहीं बल्कि हर गम से बेगाना होकर मौज मस्ती , खेलकूद और पढऩे का समय होता है। लेकिन देश की भावी पीढ़ी को इन सब के बजाय घर की जिम्मेदारियों का बोझ उठाने के लिए खटना पढ़ता है। दरगाह क्षेत्र में बहुत से किशोर वय के बच्चे देखे जा सकते हैं जो अपने परिवार की आर्थिक तंगी के चलते माला व चूडिय़ां बेचते हैं। दिन भर दिहाड़ी मजदूर की तरह काम करते करते इनके चेहरे से मासूमियत गायब हो चुकी है। हालत ये है कि इन बच्चों के लिए सरकार , प्रशासन और बच्चों के प्रति खुद को समर्पित बताने वाले संगठन भी कुछ नहीं करते।

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अजमेर. देश में प्रतिवर्ष 14 नवंबर को बाल दिवस मनाया जाता है। इस दिन बच्चों के प्रिय चाचा नेहरू का जन्मदिन होता है। इस अवसर पर कई कार्यक्रम व प्रतियोगिताएं होते हैं जिनमें बचपन की अहमियत बताई जाती है। बच्चों को उनके अधिकार व कत्र्तव्य के प्रति जागरूक रहने के लिए कहा जाता है। ये सही है कि बचपन जिम्मेदारियों का बोझ उठाने के लिए नहीं बल्कि हर गम से बेगाना होकर मौज मस्ती , खेलकूद और पढऩे का समय होता है। लेकिन देश की भावी पीढ़ी को इन सब के बजाय घर की जिम्मेदारियों का बोझ उठाने के लिए खटना पढ़ता है। दरगाह क्षेत्र में बहुत से किशोर वय के बच्चे देखे जा सकते हैं जो अपने परिवार की आर्थिक तंगी के चलते माला व चूडिय़ां बेचते हैं। दिन भर दिहाड़ी मजदूर की तरह काम करते करते इनके चेहरे से मासूमियत गायब हो चुकी है। हालत ये है कि इन बच्चों के लिए सरकार , प्रशासन और बच्चों के प्रति खुद को समर्पित बताने वाले संगठन भी कुछ नहीं करते।

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अजमेर. देश में प्रतिवर्ष 14 नवंबर को बाल दिवस मनाया जाता है। इस दिन बच्चों के प्रिय चाचा नेहरू का जन्मदिन होता है। इस अवसर पर कई कार्यक्रम व प्रतियोगिताएं होते हैं जिनमें बचपन की अहमियत बताई जाती है। बच्चों को उनके अधिकार व कत्र्तव्य के प्रति जागरूक रहने के लिए कहा जाता है। ये सही है कि बचपन जिम्मेदारियों का बोझ उठाने के लिए नहीं बल्कि हर गम से बेगाना होकर मौज मस्ती , खेलकूद और पढऩे का समय होता है। लेकिन देश की भावी पीढ़ी को इन सब के बजाय घर की जिम्मेदारियों का बोझ उठाने के लिए खटना पढ़ता है। दरगाह क्षेत्र में बहुत से किशोर वय के बच्चे देखे जा सकते हैं जो अपने परिवार की आर्थिक तंगी के चलते माला व चूडिय़ां बेचते हैं। दिन भर दिहाड़ी मजदूर की तरह काम करते करते इनके चेहरे से मासूमियत गायब हो चुकी है। हालत ये है कि इन बच्चों के लिए सरकार , प्रशासन और बच्चों के प्रति खुद को समर्पित बताने वाले संगठन भी कुछ नहीं करते।

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अजमेर. देश में प्रतिवर्ष 14 नवंबर को बाल दिवस मनाया जाता है। इस दिन बच्चों के प्रिय चाचा नेहरू का जन्मदिन होता है। इस अवसर पर कई कार्यक्रम व प्रतियोगिताएं होते हैं जिनमें बचपन की अहमियत बताई जाती है। बच्चों को उनके अधिकार व कत्र्तव्य के प्रति जागरूक रहने के लिए कहा जाता है। ये सही है कि बचपन जिम्मेदारियों का बोझ उठाने के लिए नहीं बल्कि हर गम से बेगाना होकर मौज मस्ती , खेलकूद और पढऩे का समय होता है। लेकिन देश की भावी पीढ़ी को इन सब के बजाय घर की जिम्मेदारियों का बोझ उठाने के लिए खटना पढ़ता है। दरगाह क्षेत्र में बहुत से किशोर वय के बच्चे देखे जा सकते हैं जो अपने परिवार की आर्थिक तंगी के चलते माला व चूडिय़ां बेचते हैं। दिन भर दिहाड़ी मजदूर की तरह काम करते करते इनके चेहरे से मासूमियत गायब हो चुकी है। हालत ये है कि इन बच्चों के लिए सरकार , प्रशासन और बच्चों के प्रति खुद को समर्पित बताने वाले संगठन भी कुछ नहीं करते।

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अजमेर. देश में प्रतिवर्ष 14 नवंबर को बाल दिवस मनाया जाता है। इस दिन बच्चों के प्रिय चाचा नेहरू का जन्मदिन होता है। इस अवसर पर कई कार्यक्रम व प्रतियोगिताएं होते हैं जिनमें बचपन की अहमियत बताई जाती है। बच्चों को उनके अधिकार व कत्र्तव्य के प्रति जागरूक रहने के लिए कहा जाता है। ये सही है कि बचपन जिम्मेदारियों का बोझ उठाने के लिए नहीं बल्कि हर गम से बेगाना होकर मौज मस्ती , खेलकूद और पढऩे का समय होता है। लेकिन देश की भावी पीढ़ी को इन सब के बजाय घर की जिम्मेदारियों का बोझ उठाने के लिए खटना पढ़ता है। दरगाह क्षेत्र में बहुत से किशोर वय के बच्चे देखे जा सकते हैं जो अपने परिवार की आर्थिक तंगी के चलते माला व चूडिय़ां बेचते हैं। दिन भर दिहाड़ी मजदूर की तरह काम करते करते इनके चेहरे से मासूमियत गायब हो चुकी है। हालत ये है कि इन बच्चों के लिए सरकार , प्रशासन और बच्चों के प्रति खुद को समर्पित बताने वाले संगठन भी कुछ नहीं करते।

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