script20 फीसदी बीमारियों का बोझ अकेले भारत पर | 20 percent of the burden of diseases alone on India | Patrika News

20 फीसदी बीमारियों का बोझ अकेले भारत पर

locationबैंगलोरPublished: Jan 20, 2018 06:10:58 am

इंडियन सोसाइटी ऑफ क्लिनिकल रिसर्च (आईएससी आर) का दो दिवसीय 11वां वार्षिक सम्मेलन शुक्रवार से होगा।

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बेंगलूरु. इंडियन सोसाइटी ऑफ क्लिनिकल रिसर्च (आईएससी आर) का दो दिवसीय 11वां वार्षिक सम्मेलन शुक्रवार से होगा। आईएससीआर के अध्यक्ष चिराग त्रिवेदी ने गुरुवार को बताया कि पिछले कुछ वर्ष से देश ने नैदानिक अनुसंधान प्रभावित हुआ है। इसके कारण मरीज नए और बेहतर उपचार से वंचित हो रहे हैं।

संतुलित और तर्कसंगत नियमों की पृष्ठभूमि में अब नैदानिक अनुसंधान के हितधारकों की जिम्मेदारी है कि वे इसे बढ़ावा देने की रणनीति बनाएं और मरीजों के हितों व उनकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए अनुसंधान कार्यों को इसके अंजाम तक ले जाएं। उन्होंने कहा कि विश्व में सबसे ज्यादा आबादी वाले देशों में भारत दूसरे स्थान पर है। विश्व की 20 फीसदी बीमारियों को बोझ अकेले भारत पर है। बावजूद इसके वैश्विक नैदानिक अनुसंधान में भारत की हिस्सेदारी मात्र १.४ फीसदी है।


बेहतर करने की क्षमता
सम्मेलन के अध्यक्ष रमेश जगन्नाथन बताया कि बेहतर मरीज परिणाम के लिए सहयोगी नैदानिक अनुसंधान विषय पर आयोजित इस सम्मेलन में देश-विदेश के ८०० से भी ज्यादा शोधकर्ता इसमें हिस्सा लेंगे। डेटा संचालित नैदानिक अनुसंधान में देश में काफी अच्छा करने की क्षमता है। साक्ष्य आधारित चिकित्सा, जोखिम आधारित निगरानी, नैदानिक औषधि विज्ञान और नैदोनिक अनुसंधान में भविष्य आदि विषयों पर विशेषज्ञ मंथन करेंगे।


सभी राज्यों पर बढ़ा बोझ
सेंट जॉन मेडिकल कॉलेज के वाइस डीन डेनिस जेवियर ने कहा कि राज्य स्तरीय बीमारी बोझ पहले के रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष १९९० के बाद से सभी राज्यों पर बीमारियों को बोझ चिंताजनक रूप से बढ़ा है। जिनमें हृदय रोग, मधुमेह, सांस की क्रोनिक बीमारी, मानसिक स्वास्थ्य, कैंसर, क्रोनिक गुर्दा रोग और मांसपेशी विकार मुख्य हैं।

उत्तर भारत के कई गरीब राज्यों में दस्त, नवजात विकार, टीबी, एनीमिया और श्वसन संक्रमण अब भी एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है। उन्होंने कहा कि नैदानिक अनुसंधान की महत्ता एंटीबॉयोटिक प्रतिरोध, स्वाइन फ्लू और इबोला आदि बीमारियों से लडऩे तक ही सीमित नहीं है बल्कि मलेरिया, मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी चुनौतियों से निपटने में भी मदद मिलेगी।


बची हजारों मरीजों की जान
जाने-माने नैदानिक शोधकर्ता व अन्वेषक प्रेम पाइस ने कहा कि गत ६० वर्ष में दवा के क्षेत्र में जो प्रगति हुई है उसका श्रेय नैदानिक अनुसंधान को जाता है। अनुसंधान से न केवल नए और प्रभावि उपचार विकसित करने में मदद मिली बल्कि कई ऐसी उपचार पद्धति की भी पहचान हुई जो खतरनाक थीं लेकिन इससे हजारों मरीजों की जान बची। ६० वर्ष पहले हृदयाघात के ३० फीसदी मरीजों की मृत्यु पहले माह में ही हो जाती थी। लेकिन आज इस दर में २२ फीसदी तक की गिरावट आई है।

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