-प्रथम प्रश्न पत्र में कहानियां शामिल की गई हैं। इनमें राजस्थानी लेखक विजयदान देथा की कहानी ‘उजाले के उल्लू भी शामिल है। वास्तव में इस शीर्षक से उनकी कोई कहानी नहीं है। देथा ने ‘ उजाले के मुसाहिब कहानी लिखी है। जबकि उजाले का उल्लू कहानी डॉ. महीप सिंह ने लिखी है।
-पाठ्यक्रम में वर्तनी की अशुद्धियां भी बताई गई है
-राजस्थानी की प्रमुख बोलियों में मारवाड़ी के आगे कोष्ठक में शेखावाटी लिखा गया है, यह भ्रामक है। -अव्यय के दो भेदों का उल्लेख, शेष को छोड़ दिया गया है।
-पृथ्वीराज रासो के पद्मावती समय को पाठ्यक्रम में शामिल किया है। इसके संपादक का उल्लेख नहीं है। मीरा पदावली के संपादक नरोत्तमदास स्वामी नहीं है। उनकी संपादित पुस्तक का नाम मीरां मुक्तावली है। नरोत्तम भी अशुद्ध (नरोत्त्म) लिखा है।
पाठ्यक्रम में बताई गई विसंगतियां तार्किक हैं। बिज्जी ने उजाले के मुसाहिब कहानी लिखी है। अव्यय के चार भेद होते हैं। मारवाड़ी भाषा जोधपुर, जैसलमेर, बीकानेर और आसपास की है। शेखावटी की भाषा थोड़ी खड़ी है। आयोग स्तर पर इन्हें जांचना चाहिए।
डॉ. नवल किशोर भाभड़ा, पूर्व आयुक्त और हिंदी विभागाध्यक्ष जीसीए