कोरोना ने सिखाई स्मार्टनेस, यहां स्मार्ट क्लासरूम ही नहीं… रक्तिम तिवारी/अजमेर. कोरोना संक्रमण ने पूरी दुनिया को नवाचार और कामकाज के हाईटेक तौर-तरीके सिखाए। वर्क फ्रॉम होम से लेकर ऑनलाइन कक्षाएं लेने की शुरुआत हुई। लेकिन महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय में स्मार्ट कक्षाएं अब तक सपना बनी हुई है। हाईटेक दौर में भी विश्वविद्यालय इससे कोसों दूर हैं। दस साल पहले खरीदे गए उपकरणों कहां गए इससे प्रशासन अंजान है।
आईटी के अधिकाधिक इस्तेमाल और कक्षाओं में हाईटेक संसाधनों से अध्ययन-अध्यापन के लिए विश्वविद्यालय ने 2009-10 में करीब 50 लाख रुपए के तकनीकी उपकरण खरीदे थे। इनमें स्मार्ट बोर्ड, प्रोजेक्टर, माइक युक्त स्टैंड और अन्य सामान शामिल थे। इनका इस्तेमाल विभिन्न शैक्षिक विभागों में स्मार्ट क्लासरूम में किया जाना था। दुर्भाग्य से यहां कक्षाएं स्मार्ट नहीं बन पाई हैं।
कहां गए हाईटेक उपकरण!
स्मार्ट क्लासरूम के लिए खरीदे गए उपकरणों का अता-पता नहीं है। यहां कला, वाणिज्य, सामाजिक विज्ञान, प्रबंधन सहित किसी संकाय में प्रशासन द्वारा खरीदे गए स्मार्ट उपकरणों से पढ़ाई नहीं कराई जाती। ई-लेक्चर अथवा ई-क्लासरूम तैयार नहीं हो पाए हैं। विभागों में शिक्षक और गेस्ट फेकल्टी पारंपरिक ब्लैक अथवा ग्रीन बोर्ड पर ही कक्षाएं लेते हैं। कोरोना संक्रमण में कक्षाएं बंद रहीं तो टीचर्स ने ऑनलाइन ई-लेक्चर जरूर बनाए। लेकिन ऑफलाइन कक्षाएं स्मार्ट नहीं बन पाई हैं।
स्मार्ट क्लासरूम के लिए खरीदे गए उपकरणों का अता-पता नहीं है। यहां कला, वाणिज्य, सामाजिक विज्ञान, प्रबंधन सहित किसी संकाय में प्रशासन द्वारा खरीदे गए स्मार्ट उपकरणों से पढ़ाई नहीं कराई जाती। ई-लेक्चर अथवा ई-क्लासरूम तैयार नहीं हो पाए हैं। विभागों में शिक्षक और गेस्ट फेकल्टी पारंपरिक ब्लैक अथवा ग्रीन बोर्ड पर ही कक्षाएं लेते हैं। कोरोना संक्रमण में कक्षाएं बंद रहीं तो टीचर्स ने ऑनलाइन ई-लेक्चर जरूर बनाए। लेकिन ऑफलाइन कक्षाएं स्मार्ट नहीं बन पाई हैं।
स्कूल-कॉलेज से भी पीछे…
निजी और सरकारी स्कूल-कॉलेज बहुत आगे हैं। इनमें स्मार्ट क्लास, डिजिटल लाइब्रेरी, परिसर में सीसीटीवी कैमरा, स्मार्ट प्रयोगशाला, कम्प्यूटर, प्रोजेक्टर वाले सेमिनार कक्ष और अन्य सुविधाएं हैं। कई संस्थानों में ई-लेक्चर से पढ़ाई हो रही है। 14 साल पहले बहुउद्देशीय केंद्र बनाया गया था। इसमें सुदूर संवेदन तकनीक (रिमोट सेंसिंग) के जरिए विद्यार्थियों के लिए विशेषज्ञों के ई-लेक्चर कराए जाने थे। यह केंद्र भी कागजों में दब गया।
निजी और सरकारी स्कूल-कॉलेज बहुत आगे हैं। इनमें स्मार्ट क्लास, डिजिटल लाइब्रेरी, परिसर में सीसीटीवी कैमरा, स्मार्ट प्रयोगशाला, कम्प्यूटर, प्रोजेक्टर वाले सेमिनार कक्ष और अन्य सुविधाएं हैं। कई संस्थानों में ई-लेक्चर से पढ़ाई हो रही है। 14 साल पहले बहुउद्देशीय केंद्र बनाया गया था। इसमें सुदूर संवेदन तकनीक (रिमोट सेंसिंग) के जरिए विद्यार्थियों के लिए विशेषज्ञों के ई-लेक्चर कराए जाने थे। यह केंद्र भी कागजों में दब गया।
ना कुलपतियों ना शिक्षकों को सरोकार
पिछले दस साल में विश्वविद्यालय में कई कुलपतियों ने कार्यभार संभाला। किसी ने स्मार्ट क्लासरूम में रुचि नहीं दिखाई। अफसरों-शिक्षकों ने भी स्मार्ट क्लास के लिए खरीदे गए उपकरणों की सुध नहीं ली। ऐसा तब है जबकि मौजूदा दौर में विद्यार्थियों के लिए हाईटेक सुविधाएं आवश्यक हैं।
पिछले दस साल में विश्वविद्यालय में कई कुलपतियों ने कार्यभार संभाला। किसी ने स्मार्ट क्लासरूम में रुचि नहीं दिखाई। अफसरों-शिक्षकों ने भी स्मार्ट क्लास के लिए खरीदे गए उपकरणों की सुध नहीं ली। ऐसा तब है जबकि मौजूदा दौर में विद्यार्थियों के लिए हाईटेक सुविधाएं आवश्यक हैं।