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अजमेर

RPSC: थोड़ी देर में शुरू होगी प्रवक्ता प्रतियोगी परीक्षा

जयपुर और अजमेर में होगी परीक्षा। कोरोना संक्रमितों के लिए रहेंगे पृथक इंतजाम।

अजमेरMar 12, 2021 / 09:40 am

raktim tiwari

rpsc ajmer

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अजमेर.

राजस्थान लोक सेवा आयोग के तत्वावधान में प्रवक्ता (तकनीकी शिक्षा विभाग) प्रतियोगी परीक्षा-2020 की शुरुआत शुक्रवार से होगी। विषयवार परीक्षा 19 मार्च तक चलेगी। कोरोना संक्रमित अभ्यर्थियों के परीक्षा में पृथक इंतजाम किए गए हैं।
तकनीकी शिक्षा विभाग में प्रवक्ताओं के 39 पदों पर भर्ती के लिए अजमेर और जयपुर जिला मुख्यालय पर परीक्षा कराई जाएगी। कोरोना संक्रमित अभ्यर्थी परीक्षा केंद्रों पर पहुंच गए हैं। प्रवेश पत्र के साथ मूल फोटो पहचान पत्र के अलावा एक फोटो साथ रखनी जरूरी होगी। परीक्षा में करीब 20 हजार अभ्यर्थी पंजीकृत हैं।
यूं चलेगी परीक्षा (आयोग के अनुसार )
12 मार्च- सुबह 10 से 12 बजे: राजस्थान का सामान्य ज्ञान
13 मार्च- सुबह 9 से 12 बजे मेकेनिकल इंजीनियरिंग प्रथम, केमिस्ट्री प्रथम, दोपहर 2 से 5 बजे मेकेनिकल इंजीनियरिंग द्वितीय, केमिस्ट्री द्वितीय
15 मार्च-सुबह 9 से 12 बजे सिविल इंजीनियरिंग प्रथम, दोपहर 2 से 5 बजे सिविल इंजीनियरिंग द्वितीय
16 मार्च-सुबह 9 से 12 बजे इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग प्रथम, दोपहर 2 से 5 बजे इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग द्वितीय
17 मार्च-सुबह 9 से 12 बजे: फिजिक्स प्रथम, दोपहर 2 से 5 बजे फिजिक्स द्वितीय
18 मार्च- सुबह 9 से 12 बजे: गणित प्रथम, दोपहर 2 से 5 बजे गणित द्वितीय
19 मार्च- सुबह 9 से 12 बजे अंग्रेजी प्रथम, दोपहर 2 से 5 बजे: अंग्रेजी द्वितीय
वैज्ञानिकों का खरमौर पर फोकस, कर रहे हैं खास काम

रक्तिम तिवारी/अजमेर. वन एवं पर्यावरण मंत्रालय और भारतीय वन्य जीव संस्थान खरमौर पर विस्तृत अध्ययन में जुटे हैं। शोकलिया क्षेत्र के दो खरमौर को टैग किया है। इनमें एक मध्यप्रदेश और दूसरा महाराष्ट्र में है। विशेषज्ञ दूसरे राज्यों में इनके भोजन, रहन-सहन, जलवायु और अन्य प्रवृत्तियों पर निगाह बनाए हुए हैं।
वन्य क्षेत्र और वन संपदा में लगातार कमी से पशु-पक्षियों पर जबरदस्त असर पड़ा है। खरमौर भी इनमें शामिल है। अजमेर जिले में सोकलिया, गोयला, रामसर, मांगलियावास और केकड़ी खरमौर के पसंदीदा क्षेत्र है। मूलत: प्रवासी पक्षी कहा वाला खरमौर इन्हीं इलाकों के हरे घास के मैदान, झाडिय़ों युक्त ऊबड़-खाबड़ क्षेत्र में दिखता रहा है। खासतौर पर मानसून की सक्रियता (जुलाई से सितंबर) के दौरान तो यह अक्सर रहते आए हैं। लेकिन धीरे-धीरे यह विलुप्त होती प्रजातियों में शामिल होने की कगार पर पहुंच गया।
कर रहे हैं अध्ययन
भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून के डॉ. सुतीर्थ दत्ता ने बताया कि वन एवं पर्यावरण मंत्रालय सहित संस्थान खरमौर के विस्तृत अध्ययन में जुटा है। फिलहाल कुछ खरमौर को टैग (चिप बांधना) किया गया है। इनमें से एक खरमौर मध्यप्रदेश और दूसरा महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में है। टीम इनके रहन-सहन, खान-पान, जलवायु, व्यवहार के अध्ययन में जुटी है। ताकि इस पर विस्तृत शोध हो सके।
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