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अजमेर: 150 कारखाने खामोश

locationअजमेरPublished: Oct 18, 2021 03:29:52 pm

अजमेर में पिछले कुछ सालों में करीब 150 उद्योग ऐसे हैं जो बंद हुए, जबकि 731 कारखानें वर्तमान में संचालित हैं। यह रिपोर्ट फैक्ट्री एवं बॉयलर इंस्पेक्टर की है। बंद कारखानों की संख्या इससे ज्यादा भी हो सकती है।

अजमेर: 150 कारखाने खामोश

अजमेर: 150 कारखाने खामोश

युगलेश शर्मा.

अजमेर. आर्थिक तंगी, प्रशासनिक अनदेखी, जनप्रतिनिधियों की उदासीनता, गलाकाट व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा एवं बदलते सामाजिक-आर्थिक-व्यावसायिक परिदृश्य के चलते अजमेर का औद्योगिक विकास गति नहीं पकड़ सका है। हालात चौंकाने वाले हैं और निराशाजनक भी। स्थिति यह है कि जिले के कई नामी कारखानों और मिल को हालात लील गए तो नाकारा हुई मशीनों को जंग खा गया।
अजमेर में पिछले कुछ सालों में करीब 150 उद्योग ऐसे हैं जो बंद हुए, जबकि 731 कारखानें वर्तमान में संचालित हैं। यह रिपोर्ट फैक्ट्री एवं बॉयलर इंस्पेक्टर की है। बंद कारखानों की संख्या इससे ज्यादा भी हो सकती है। चौंकाने वाली सच्चाई यह भी कि बंद हुए कारखानों में कई नामी मिल रही हैं जिनसे जुड़े हजारों श्रमिक बेरोजगार हो गए। लेकिन इसके बावजूद अजमेर के औद्योगिक विकास को लेकर कोई ऐसी योजना किसी भी स्तर पर नहीं बन सकी जिससे जिले के श्रमिकों का पलायन रोका जा सके। जबकि अजमेर में ही रोजगार की अपार संभावनाएं हैं।
अजमेर: पीछे छूटी एचएमटी की धाक

किसी जमाने में हिंदुस्तान की अग्रणी कंपनियों में शामिल एचएमटी की अजमेर यूनिट की धाक हुआ करती थी। लेकिन धीरे-धीरे कार्य की कमी के चलते कर्मचारियों की संख्या कम होती गई। सरकार अगर इस तरफ ध्यान दे तो फिर से एचएमटी को पुनर्जीवित कर हजारों लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया जा सकता है।
ब्यावर: बंद हुईं तीन पावरलूम मिल

कपड़ा व सिरेमिक उद्योग के लिए प्रसिद्ध ब्यावर की कृष्णा मिल, एडवर्ड मिल, महालक्ष्मी मिल बंद हो चुकी हैं। इनसे करीब 4 हजार श्रमिक जुड़े हुए थे। ब्यावर में हालांकि कपड़ा उद्योग के बाद मिनरल उद्योग फैला है लेकिन यहां पावरलूम उद्योग की परेशानियों को समझ उनका निदान कर पावरलूम यूनिट बढ़ाने की योजना बनाई जा सकती है। साथ ही महालक्ष्मी मिल को फिर से शुरू किए जाने के प्रयास तेज किए जाने की जरूरत है।
किशनगढ़ : मिल-कारखानों पर ताले

मार्बल नगरी के नाम से अपनी पहचान बनाने वाले किशनगढ़ में आदित्य मिल, महेश मेटल कारखाना, महाराजा मिल जैसी इकाइयां बंद हो गई। उस वक्त इनसे जुड़े करीब 2000 श्रमिक बेरोजगार हो गए। इसके विकल्प के रूप में हालांकि दो टेक्सटाइल पार्क स्थापित हुए जहां बेडशीट का कपड़ा तैयार किया जा रहा है। लेकिन किशनगढ़ में अभी भी रोजगार की काफी संभावनाएं हैं। यहां बंद हुई इकाइयों को पुनर्जीवित करने के लिए सरकारी स्तर पर प्रयास की जरूरत है। इसके अलावा यहां मार्बल स्लरी व पत्थर के टुकड़ों का उपयोग कर अलग से इंडस्ट्री विकसित की जा सकती है।
पुष्कर : मोगरे की गायब हुई महक

पुष्कर में कभी गुलाब की तरह की मोगरे की खेती भी हुआ करती थी लेकिन पानी की कमी के कारण अब मोगरे की खेती नहीं होती। पुष्कर में वर्तमान में गुलाब, आंवला, जामुन की हालांकि अच्छी पैदावार होती है। लेकिन इनके लिए भी यहां पर्याप्त संख्या में प्रोसेसिंग यूनिट नहीं हैं। जबकि इन पैदावार से जुड़े बाइ-प्रोडक्ट जैसे गुलाबजल, इत्र, गुलकंद, आंवला कैंडी, मुरब्बा, जामुन पेस्ट, जामुन चिप्स आदि तैयार किए जाकर बड़ा बाजार हासिल किया जा सकता है।
पीसांगन : चमड़ा उद्योग बंद, 8 हजार का पलायन

पीसांगन में अमूमन सभी लोग दस साल पहले चमड़ा उद्योग से जुड़े हुए थे। बाद में यह उद्योग खत्म होने से करीब 8 हजार लोग यहां से पलायन कर गए। अब वह अहमदाबाद और मुम्बई में बाटा उद्योग से जुड़े हैं। उन्हें अगर अजमेर जिले में ही कच्चा माल उपलब्ध हो तो यहां भी बाटा उद्योग पनप सकता है। इसके अलावा चमड़े से सबंधित वस्तुएं भी यहां निर्मित कर सप्लाई की जा सकती हैं।
जिले में कहां. .क्या संभावनाएं

-गेगल में पावरलूम यूनिट को सुविधाएं उपलब्ध करा कर इसे नया कलेवर दिया जा सकता है।
– बांदनवाड़ा, मसूदा में ईंट भट्टा उद्योग और विकसित किया जा सकता है।
-बिजयनगर में सिरेमिक इंडस्ट्री विकसित की जा सकती है।
– केकड़ी, भिनाय के आस-पास के क्षेत्रों में धनिया, जीरा, सौंफ आदि की मसाला यूनिट स्थापित की जा सकती है।

-नसीराबाद में ट्रक-ट्रेलर बॉडी निर्माण को बढ़ाने के प्रयास किए जा सकते हैं।
जिले के बेरोजगार कल-कारखानों के हाल

-जिले में बेरोजगारों की संख्या- 43 हजार 500
-कोरोना काल में पलायन करने वालों की संख्या -10 हजार

-पिछले 20 साल में बंद हुए कारखाने – 150
-पिछले 15 सालों में बंद हुए कारखाने – 100
एक्सपर्ट व्यू—

लम्बे अर्से तक अजमेर-ब्यावर और किशनगढ़ क्षेत्र भारत के अहम औद्योगिक केंद्र रहे हैं। यहां टेक्सटलाइल, पावरलूम, सीमेंट, भारी और लघु इंजीनियरिंग उद्योगों को मांग के अनुसार बदलाव करने चाहिए। एचएमटी को अपग्रेड कर मिनी ट्रेक्टर, मशीनरी और इंजीनियरिंग उपकरण बना सकते हैं। इनसे ना केवल जिले में रोजगार बढ़ेगा बल्कि विद्यार्थियों को प्रेक्टिकल ट्रेनिंग मिल सकेगी। जिले में जिन उद्यमों ने समय के साथ बदलाव टेक्नोलॉजी और मार्केट कैप के अनुसार बदलाव किए वे सफल हैं। स्थानीय से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मार्केट का सिद्धांत ही जिले को उद्यम जगत में पहचान दिला सकते हैं।
-डॉ. अंकुर पारीक, कॉर्डिनेटर प्लेसमेंट सेल, इंजीनियरिंग कॉलेजक्च

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