राज्यपाल कल्याण सिंह के निर्देश पर महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय में साल 2015 से हिंदी विभाग प्रारंभ हुआ। तीन साल से विभाग अपनी पहचान कायम नहीं कर पाया है। सिर्फ दिखाने के लिए कामचलाऊ शिक्षक कक्षाएं लेते हैं। विद्यार्थियों की संख्या भी 10-12 तक ही सिमटी हुई है। ना सरकार ना विश्वविद्यालय ने विभाग में स्थाई प्रोफेसर, रीडर अथवा लेक्चरर की नियुक्ति करना मुनासिब समझा है। विभाग की तरफ से कोई राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन, कार्यशाला, विद्यार्थियों की प्रतियोगिता नहीं होती है।
नहीं हो रही भर्तियां
सरकार और राजस्थान लोक सेवा आयोग कॉलेज में हिंदी व्याख्याताओं की नियमित भर्तियां नहीं कर रहे। साल 2014 की कॉलेज व्याख्याता हिंदी भर्ती के साक्षात्कार और परिणाम पिछले दिनों जारी हुए हैं। यही वजह है, कि विद्यार्थियों-युवाओं का हिंदी भाषा में कॅरियर बनाने के प्रति रुझान घट रहा है। स्नातक और स्नातकोत्तर कॉलेज में भी हिंदी भाषा के हाल खराब होने लगे हैं। प्रथम वर्ष में तो विद्यार्थी सिर्फ हिंदी में पास होने के लिए किताब पढ़ते हैं।
सरकार और राजस्थान लोक सेवा आयोग कॉलेज में हिंदी व्याख्याताओं की नियमित भर्तियां नहीं कर रहे। साल 2014 की कॉलेज व्याख्याता हिंदी भर्ती के साक्षात्कार और परिणाम पिछले दिनों जारी हुए हैं। यही वजह है, कि विद्यार्थियों-युवाओं का हिंदी भाषा में कॅरियर बनाने के प्रति रुझान घट रहा है। स्नातक और स्नातकोत्तर कॉलेज में भी हिंदी भाषा के हाल खराब होने लगे हैं। प्रथम वर्ष में तो विद्यार्थी सिर्फ हिंदी में पास होने के लिए किताब पढ़ते हैं।
घट रहे हैं प्रवेश
विभिन्न कॉलेज में स्नातकोत्तर स्तर पर संचालित हिंदी कोर्स में दाखिले कम रहे हैं। अजमेर के सम्राट पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय जैसे कुछेक संस्थाओं को छोडकऱ अधिकांश में युवाओं का रुझान हिंदी में एमए करने की तरफ घट रहा है। विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के हाल भी खराब हैं। शिक्षक, भाषा प्रयोगशाला और अन्य संसाधन नहीं होने से विद्यार्थियों की प्रवेश में रुचि कम हो रही है।
विभिन्न कॉलेज में स्नातकोत्तर स्तर पर संचालित हिंदी कोर्स में दाखिले कम रहे हैं। अजमेर के सम्राट पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय जैसे कुछेक संस्थाओं को छोडकऱ अधिकांश में युवाओं का रुझान हिंदी में एमए करने की तरफ घट रहा है। विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के हाल भी खराब हैं। शिक्षक, भाषा प्रयोगशाला और अन्य संसाधन नहीं होने से विद्यार्थियों की प्रवेश में रुचि कम हो रही है।