scriptशनि प्रदोष व्रत आज, बरसती है भगवान शिव की असीम कृपा | Shani Pradosh fasting today, it rains immense grace of Lord Shiva | Patrika News

शनि प्रदोष व्रत आज, बरसती है भगवान शिव की असीम कृपा

locationअजमेरPublished: Jan 15, 2022 12:41:11 am

Submitted by:

Dilip

– शिव मंत्रों का जाप और शनि देव की पूजा से होता है बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान – प्रदोष मुहूर्त में है भगवान शिव की पूजा का विधान साल 2022 का प्रदोष व्रत आज है। शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि शनिवार के दिन होने की वजह से इसे शनि प्रदोष व्रत कहा जाता है। इस व्रत में भगवान शिव की प्रदोष मुहूर्त में पूजा का विधान है। मान्यता है कि इस दिन जो जातक शिव मंत्रों का जाप करते हैं और शिवजी के साथ शनि देव की पूजा करते हैं उनके जीवन की बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान हो जाता है। ऐसे जातकों की सभी मनोकामनाएं प

Lord Shiva

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धौलपुर. साल 2022 का प्रदोष व्रत आज है। शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि शनिवार के दिन होने की वजह से इसे शनि प्रदोष व्रत कहा जाता है। इस व्रत में भगवान शिव की प्रदोष मुहूर्त में पूजा का विधान है। मान्यता है कि इस दिन जो जातक शिव मंत्रों का जाप करते हैं और शिवजी के साथ शनि देव की पूजा करते हैं उनके जीवन की बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान हो जाता है। ऐसे जातकों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
पुराणों के अनुसार इस व्रत को करने से लम्बी आयु का वरदान मिलता है। हालांकि प्रदोष व्रत भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए विशेष माना जाता है, लेकिन शनि प्रदोष का व्रत करने वालों को भगवान शिव के साथ ही शनि की भी विशेष कृपा प्राप्त होती है। इसलिए इस दिन भगवान शिव के साथ ही शनिदेव की पूजा अर्चना भी करनी चाहिए। मान्यता है कि ये व्रत रखने वाले जातकों के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और मृत्यु के बाद उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।
शनि प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त

पौष माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 14 जनवरी रात 10:19 बजे से शुरू हो रही है। इसका समापन 15 जनवरी की देर रात 12:57 बजे होगा। उदयातिथि में 15 जनवरी के शनि प्रदोष व्रत रखा जाएगा। 15 जनवरी की शाम 05:46 बजे से लेकर रात 08:28 बजे तक प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा कर सकते हैं।
शनि प्रदोष व्रत की पूजा विधि

शिव मन्दिरों में शाम के समय प्रदोष काल में शिव मंत्र का जाप करें। शनि प्रदोष के दिन सूर्य उदय होने से पहले उठें और स्नान करके साफ कपड़े पहनें। गंगा जल से पूजा स्थल को शुद्ध कर लें। बेलपत्र, अक्षत, दीप, धूप, गंगाजल आदि से भगवान शिव की पूजा करें। इसके बाद ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जाप करें और शिव को जल चढ़ाएं। शनि की आराधना के लिए सरसों के तेल का दीपक पीपल के पेड़ के नीचे जलाएं। एक दीपक शनिदेव के मंदिर में जलाएं। व्रत का उद्यापन त्रयोदशी तिथि पर ही करें।
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