इनका स्थायी ठिकाना होता है शहर का हृदय स्थल गांधी भवन चौराहा स्थित ट्रेफिक गुमटी। यहीं देर रात को नशे में धुत्त शोहदे किस्म के युवक पहुंच जाते हैं और नकली किन्नरों से मोल-भाव करते हैं।
सौदा पटने पर कार, ऑटोरिक्शा या मोटरसाइकिल पर बैठाकर इन किन्नरों को ‘सुरक्षित स्थानों पर ले जाते हैं। कई बार तो यह नकली किन्नर ट्रेफिक गुमटी के पीछे ही या गांधी भवन के बगीचे में बापू की प्रतिमा के नीचे ही अनैतिक कृत्य अंजाम देते हैं। अगर वहां से गुजरता कोई शरीफ शहरी इन्हें टोकता है तो नकली किन्नर हंगामा और मारपीट पर उतारू हो जाते हैं।
किन्नर नहीं पुरुष अनैतिक गतिविधियों में लिप्त खुद को किन्नर बताने वाले ये लोग दरअसल किन्नर नहीं बल्कि पुरुष हैं जो चंद रुपयों की लालच में युवाओं को गंभीर यौन रोगों की गहरी गर्त में धकेल रहे हैं। इनमें से खुद भी कई यौन रोगों की चपेट में हैं और अपने शिकार को भी बीमारियां बांट रहे हैं।
सुलभ कॉम्प्लेक्स में होते तैयार रात होते ही किन्नरनुमा पुरुष दो-दो तीन-तीन की टोली के रूप में गांधी भवन पहुंच जाते हैं और वहां सुलभ कॉम्प्लेक्स में मेकअप आदि करके महिला परिधान में सजते-धजते हैं। उसके बाद गांधीभवन चौराहा और गंज तिराहे पर डेरा जमा लेते हैं। उसके बाद शुरू हो जाता है शिकार की तलाश और सौदेबाजी का सिलसिला।
ऐसे पटता है सौदा किन्नर बनके अनैतिक गतिधियां अंजाम देने वाले ये पुरुष शिकार की हैसियत और शक्ल देखकर सौदा तय करते हैं। ज्यादातर सौ से पांच सौ रुपए अपने शिकार से झटक लेते हैं।
पुलिस की शह रात भर पुलिस के गश्ती वाहन कई बार गांधी भवन चौराहे से गुजरते हैं। ट्रेफिक गुमटी के पास डेरा जमाए नकली किन्नरों और युवाओं को देख कर भी पुलिसकर्मी उन्हें पकड़ते नहीं बल्कि सिर्फ वहां से चले जाने को कह देते हैं। जबकि पुलिसकर्मी अच्छी तरह जानते हैं कि नकली किन्नर अनैतिक गतिविधियों में लिप्त हैं इसके बावजूद उन पर कानूनी कार्रवाई नहीं की जाती। इससे नकली किन्नरों की गतिविधियों को पुलिस की मौक स्वीकृति का संदेह होना स्वाभाविक है।