कारोबार के लिए सरकार ने सभी बंदिशें खोल दी है। इसके बावजूद जिले से पलायन कर गए श्रमिकों के चलते आधी फैक्ट्रियों के ताले नहीं खुले हैं। इनमें से अधिकतर वह फैक्ट्रियां शामिल हैं, जिनमें कुशल व अनुभवी श्रमिक ही कार्य कर सकते हैं। इस प्रकार के श्रमिक जिले में नहीं होने से कई फैक्ट्रियां बंद पड़ी है।
कई कारखाना मालिका दूसरे प्रदेश के प्रमुख बात यह भी कि अधिकतरकारखाना मालिक आगरा, ग्वालियर, मुरैना या दिल्ली में रहते हंै। इनमें अधिकतर फाउण्ड्री (लोहे गलाकर उपकरण बनाने वाली) निर्माण के अलावा ऐसी फैक्ट्रियां शामिल हैं, जिनमें बैट्री निर्माण, लोहे व सीमेंट के खम्भे बनानी वाली फैक्ट्रियां शामिल हैं।
इनको बिना अनुभवी श्रमिकों के नहीं खोला जा सकता है। हालांकि इसके लिए उद्योग विभाग निरंतर प्रयास कर रहा है। सभी उद्योगपतियों से सम्पर्क भी कर रहा है, लेकिन एक ओर फैक्ट्री मालिक परेशान हैं तो दूसरी ओर अर्थव्यवस्था का दारोमदार है। ऐसे में जिला प्रशासन, श्रम विभाग तथा उद्योग विभाग भी प्रयारस हैं।
खपत नहीं होने से फैक्ट्रियां संचालित नहीं जिले की कई फैक्ट्रियां डेयरी उत्पाद बनाने वाली हैं। इसमें पनीर, मावा, घी आदि शामिल हैं। इनके मालिकों ने खपत नहीं होने के चलते इनको बंद कर रखा है। हालांकि इन पर शुरू से ही रोक नहीं थी, लेकिन जब खपत ही नहीं होगी तो उत्पादन करने से क्या फायदा। ऐसे में करीब तीस से चालीस प्रतिशत डेयरी प्लांट बंद हैं।
मिठाई की दुकानें तो खुल गई, लेकिन बिक्री नहीं है। वहीं शादी विवाह और त्योहार व मेले भी निकल गए हैं, जिनमें बड़ी मात्रा में डेयरी उत्पादों की खपत होती थी। वहीं नमकीन, बेस, आटा दाल मिल जरूर संचालित हैं।
स्टोन यूनिट भी 40 प्रतिशत ही खुले जिले की पहचान धौलपुर स्टोन व गैंगसा यूनिट भी मांग नहीं होने से जिले में स्थित पूरी यूनिट में से 40 प्रतिशत ही खुल पाई हैं। जिले में इनकी संख्या अनुमानित 200 के करीब हैं। निर्माण कार्य में तेजी नहीं आने से इनमें खपत नहीं हो रही है, वहीं मेहनताना पूरा लगता है।
इनमें बड़ी संख्या में श्रमिकों की जरूरत होती है। ऐसे में गैंगसा मालिकों को नुकसान हो रहा है। ऐसे में आधे से अधिक ने बंद ही कर रखी है। इससे श्रमिक भी बेरोजगार हैं तो मालिकों को भी घाटा हो रहा है। रीको में 60 प्रतिशत तथा ईंट भट्टे 80 प्रतिशत तक खुल गए हैं।
उड़ीसा व छत्तीसगढ़ पलायन फाउण्ड्री फैक्टियों में कार्य करने वाले अधिकतर श्रमिक उड़ीसा, छत्तीसगढ़ तथा झारखण्ड के हैं। कुछ दिन तो वे फैक्ट्रियों के अंदर ही रहे, लेकिन जब सभी श्रमिक अपने घरों पर जाने लगे तो उन्होंने भी अपने घर जाने की पड़ी। इस पर प्रशासन ने उनको भी भिजवाया, लेकिन जिले में आए करीब 16 हजार श्रमिकों में अधिकतर होम क्वॉरंटीन चल रहे हैं तो कइयों को इन फैक्ट्रियों में कार्य करने का अनुभव नहीं है।
आरएसएलडीसी ने सौंपी श्रमिकों की सूची जिले में प्रशिक्षित करीब तीन हजार लोगों की सूची उद्योग विभाग ने उद्योगपतियों को सौंपी है। इन लोगों को आरएसएलडीसी ने विभिन्न ट्रेडों में प्रशिक्षित किया है, लेकिन इनमें से भी अभी तक लोगों का चयन नहीं किया गया है। इसके पीछे यह भी कारण माना जा रहा है कि इनकी खपत नहीं है, क्योंकि दिल्ली, आगरा जैसे शहरों में इन माल की आपूर्ति न कर बराबर है। इन शहरों में अधिकतर जगह कफ्र्यू लगा हुआ है।
50 प्रतिशत फैक्ट्रियां संचालत नहीं कृष्ण अवतार शर्मा, महाप्रबंधक, उद्योग विभाग, धौलपुर के अनुसार जिले में वर्तमान में बड़ी फैक्ट्रियां 453 हैं, जिनमें 50 लाख रुपए से अधिक का इनवेस्टमेंट है। इनमें श्रमिकों के अभाव में करीब 50 प्रतिशत फैक्ट्रियां संचालत नहीं है। इनके अधिकतर मालिक आगरा सहित ग्वालियर व दिल्ली में रहते हैं। इनके श्रमिक उड़ीसा, छत्तीसगढ़ सहित अन्य प्रदेशों में पलायन कर गए। उद्योगपतियों को आरएसएलडीसी से प्रशिक्षित तीन हजार व्यक्तियों की सूची सौंपी है, इनसे रोजगार भी मिलेगा और फैक्ट्रियां शुरू होने के आसार भी बनेंगे।
प्रवासी श्रमिकों को भी मिलेगा प्रशिक्षण राकेश कुमार जायसवाल, जिला कलक्टर, धौलपुर के अनुसार जिले में फैक्ट्रियों में श्रमिकों को नियोजित कराने तथा उपलब्ध कराने के लिए श्रम विभाग को कहा गया है। राज्य सरकार की गाइड लाइन के अनुसार प्रवासी श्रमिकों को भी प्रशिक्षित किया जाएगा। हालांकि कई उद्योगपतियों को झारखण्ड सहित अन्य प्रदेशों से वापस श्रमिकों को लाने के लिए बसों की अनुमति भी उदारता बरतते हुए दी है,जिससे फैक्ट्रियों का संचालन शीघ्र ही शुरू होने की संभावना है।