विश्वविद्यालतय प्रतिवर्ष स्नातक और स्नातकोत्तर परीक्षाओं के फार्म ऑनलाइन भराता है। विद्यर्थियों को पहले ई-मित्र पर ऑनलाइन फार्म भरना पड़ता है। इसके बाद बैंक में चालान से फीस और हार्ड कॉपी का प्रिंट निकालकर कॉलेजों में जमा कराना पड़ता है। यह प्रक्रिया विद्यार्थियों को जबरदस्त परेशान करती है।
खास सूचनाएं रहें हमेशा अपडेट विद्यार्थियों को हर साल फार्म में नाम, माता-पिता का नाम और संकाय और अन्य सूचनाएं भरनी पड़ती हैं। इसकी हार्ड कॉपी कॉलेज में जमा करानी पड़ती है। वहां जांच होने के बाद विश्वविद्यालय की उसकी जांच करता है। इस प्रक्रिया को विश्वविद्यालय स्मार्ट बनाना चाहता है। वह वन टाइम रजिस्ट्रेशन योजना की तर्ज पर नई योजना तैयार करने का इच्छुक है। इसके तहत विद्यार्थियों की जरूरी सूचनाएं आधार कार्ड के जरिए सीधे सर्वर पर दर्ज होंगी। फीस भी डेबिट/क्रेडिट कार्ड से स्क्रेच प्रक्रिया अथवा बैंक चालान से जमा हेागी। नाम, माता-पिता का नाम, संकाय जैसी सूचनाएं बार-बार नहीं भरनी पड़ेंगी। केवल विद्यार्थी को संबंधित कक्षा के उत्तीर्ण/अनुत्तीर्ण होने की मार्कशीट, पेपर के नाम ही भरने होंगे।
विशेषज्ञों से होगी बातचीत विश्वविद्यालय परीक्षा फार्म पद्धति में नवाचार योजना पर तकनीकी विशेषज्ञों, फर्मों से बातचीत करेगा। राजस्थान लोक सेवा आयोग की वन टाइम रजिस्ट्रेशन प्रणाली का भी अध्ययन कराएगा। कम्प्यूटराइज्ड प्रोग्राम तैयार होने के बाद इसका परीक्षण होगा। तकनीकी खामियों को दुरुस्त करने के बाद ही इसकी शुरुआत की जाएगी। मालूम हो कि आयोग ने वन टाइम रजिस्ट्रेशन प्रणाली शुरू की है। इसमें विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अभ्यर्थियों को बार-बार पंजीयन और आवश्यक सूचनाएं देनी जरूरी नहीं होगी।
अतिरिक्त वेतन-भत्तों का चक्कर?
विश्वविद्यालयों के हाइटेक प्रणाली नहीं अपनाने के पीछे भी कई कारण हैं। पहले विद्यार्थियों की हार्ड कॉपी कॉलेजों में प्राचार्य और स्टाफ जांचते हैं। इसके बाद विश्वविद्यालय में इनकी जांच होती है। प्रति हार्ड कॉपी (आवेदन) पर अतिरिक्त पारिश्रमिक मिलता है। परीक्षा फार्म भरने और जांचने तक कॉलेज और विश्वविद्यालय में यह राशि ओवरटाइम के रूप में मिलती है। ऐसे में विश्वविद्यालय फिजूल की प्रक्रिया को अपनाए बैठा है।
विश्वविद्यालयों के हाइटेक प्रणाली नहीं अपनाने के पीछे भी कई कारण हैं। पहले विद्यार्थियों की हार्ड कॉपी कॉलेजों में प्राचार्य और स्टाफ जांचते हैं। इसके बाद विश्वविद्यालय में इनकी जांच होती है। प्रति हार्ड कॉपी (आवेदन) पर अतिरिक्त पारिश्रमिक मिलता है। परीक्षा फार्म भरने और जांचने तक कॉलेज और विश्वविद्यालय में यह राशि ओवरटाइम के रूप में मिलती है। ऐसे में विश्वविद्यालय फिजूल की प्रक्रिया को अपनाए बैठा है।
ऑनलाइन परीक्षा फार्म प्रणाली को स्मार्ट बनाया जाएगा। विद्यार्थियों को आवश्यक सूचनाएं बार-बार नहीं भरनी पड़े इसको लेकर एक हाइटेक सिस्टम बनाने की योजना है। कुलपति, सरकार और तकनीकी फर्म से चर्चा के बाद इसकी शुरुआत की जाएगी।
प्रो. सुब्रतो दत्ता, परीक्षा नियंत्रक, मदस विश्वविद्यालय