अजमेर में कुछ रक्तदाता तो ऐसे हैं जिन्होंने हर तीन माह में रक्तदान कर किसी ना किसी की जान बचाई है। अपनी 60 वर्ष की आयु के दौरान कुछ तो ऐसे हैं जिन्होंने 80 से 110 बार रक्तदान किया है। जवाहर लाल नेहरू अस्पताल के संभागीय ब्लड बैंक में वर्ष 2018 में जहां 15 हजार 855 लोगों ने स्वैच्छिक रक्तदान किया है जबकि वर्ष 2019 में मई माह तक 7637 लोगों ने रक्तदान कर औरों की जान बचाने का पुनीत कार्य किया है। एक दशक में आई जागरूकता चिकित्सा विभाग के साथ विभिन्न स्वयंसेवी संगठनों व संस्थाओं की ओर से रक्तदान को लेकर जगाई जा रही अलख के चलते बीते एक दशक में रक्तदान करने के लिए आमजन, युवाओं में उत्साह बढ़ा है।
रक्तदान करने वाली प्रमुख छह संस्थाएं अजमेर रीजन थैलैसिमिया वेलफेयर सोसायटी,संत निरंकारी मंडल आशागंज अजमेर/केकड़ी,उत्तर पश्चिम रेलवे मजदूर संघ,एचडीएफफी बैंक प्रबंधन,होटल मानसिंह प्रा. लि., राजगढ़ मसानियां भैरव धाम समिति। (जोनल ब्लड बैंक के अनुसार)
फैक्ट फाइल (जेएलएनएच ब्लड बैंक) वर्ष 2018 की रिपोर्ट
122 स्वैच्छिक रक्तदान शिविर 8505 यूनिट रक्तदान हुआ शिविरों में
15,855 यूनिट रक्तदान कुल वर्षभर में 35000 रक्त यूनिट व अन्य कंपोनेंट की मरीजों को आपूर्ति
वर्ष 2019 (मई माह तक)
50 स्वैच्छिक रक्तदान शिविर 3770 यूनिट रक्तदान शिविरों में
7637 यूनिट रक्तदान कुल 15,420 रक्त यूनिट व कंपोनेंट की मरीजों को आपूर्ति इनका कहना है जोनल ब्लड बैंक में वर्ष 2018 में 15855 एवं वर्ष 2019 में मई माह तक 7637 लोगों ने रक्तदान किया है। यहां विभिन्न संस्थाएं व संगठन भी सहयोग कर रहे हैं। ब्लड एवं कंपोनेन्ट के माध्यम से हजारों लोग प्रतिवर्ष लाभान्वित हो रहे हैं।
-डॉ.बी.एल. मीणा, प्रभारी ब्लड बैंक जेएलएनएच इनके जज्बे को सलाम खुद इंसुलिन पर नहीं आए तब तक करते रहे रक्तदान अजमेर रीजन थैलेसिमिया वेलफेयर सोसायटी के महामंत्री ईश्वर पारवानी ने अब तक 108 बार रक्तदान का दावा किया है। बेटी थैलेसिमिया पीडि़त होने पर पहली बार 1989 में रक्तदान किया। बेटी के ऑपरेशन के दौरान एक सप्ताह में तीन बार भी किया। बेटी की मौत के बाद थैलेसिमिया पीडि़तों के लिए हर माह में भी रक्तदान किया। सोसायटी की ओर से अब तक 43 स्वैच्छिक रक्तदान शिविर आयोजित कर करीब 13 हजार यूनिट रक्तदान करवाया।
पहुंच जाते हैं इमरजेंसी कॉल आते ही पुलिस लाइन चौराहा पर कपड़ा व्यवसायी एवं समाजसेवी दिनेश जैन का ब्लड ग्रुप ‘ओ’ नेगेटिव है। रक्तदान की शुरुआत वर्ष 1996 में महावीर जयंती पर की। वे ढूंढते हुए ब्लड बैंक पहुंचे और कहा कि रक्तदान करना है। स्टाफ को ही परिजन बताकर उन्होंने रक्तदान किया। ओ नेगेटव ग्रुप होने के चलते जब भी इमरजेंसी कॉल आता है तो वे रक्तदान को पहुंच जाते हैं, अब तक 36 से अधिक बार रक्तदान किया है।