सबसे दोस्ताना संबंध
देवनानी ने कहा कि छात्रसंघ चुनाव अब बाहुबल और खर्चीले हो चले हैं। हमारे जमाने में टकराव, मनमुटाव, फिजूल खर्ची की बजाय चुनाव दोस्ताना होते थे। नेताओं में चुनाव तक सिर्फ वैचारिक मतभेद होता था। सभी परिवार की तरह एकजुट रहते और एक-दूसरे की मदद करते थे।
यूं दिए थे भूपेंद्र, गजेंद्र और सर्राफ को टिकट
छात्र नेताओं को चुनाव लड़ाने की बात चली तो देवनानी बोले, मैंने ही भूपेंद्र यादव, गजेंद्र सिंह शेखावत और कालीचरण सर्राफ को कॉलेज और यूनिवर्सिटी छात्रसंघ चुनाव के टिकट दिए थे। इससे पहले मैंने तीनों की भाषण कला, संगठन में काम करने और प्रबंधन को परखा फिर कार्यकारिणी सदस्यों से पूछकर नाम तय किए।
करते थे व्यक्तिगत संपर्क
देवनानी ने बताया कि तबके चुनाव में खर्चों-दिखावटी रैलियों की जगह नहीं थी। चाहे एबीवीपी हो या एनएसयूआई के छात्र, सबका कामकाज का तरीका यही था। कई बार दोनों दलों के छात्रनेता विद्यार्थियों के घरों में जाकर भोजन करते थे। कॉलेज-विश्वविद्यालय के विकास, पढ़ाई, सह शैक्षिक गतिविधियों के मुद्दे ही खास होते थे। बहुत हुआ तो कागज या गत्ते पर घोषणा पत्र बना लिया करते थे। संगठन ने जिसको टिकट दे दिया, उसके साथ मिल-जुलकर काम करते थे।