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ब्रह्माजी की नगरी का यह पकवान है बहुत खास, भर देता है मुंह में मिठास

locationअजमेरPublished: Jun 30, 2019 02:46:27 pm

Submitted by:

Amit

देशी विदेशी पर्यटकों की भी पहली पंसद स्वीट चपाती

rajasthan news

Action on hotels and confectionery shops in Panna created panic

महावीर भट्ट.

पुष्कर (अजमेर)
चीनी की चाशनी के रस से लबरेज मालपुओं का नाम आते ही किसी के भी मुंह में पानी आ सकता है। यह ऐसी मिठाई है, जिसको आमतौर पर लोग बरसात के दिनों में अधिक पसंद करते हैं, लेकिन तीर्थराज पुष्कर में तो बारह मास ही दूध की रबड़ी व देशी घी से ििर्नमत मालपुओं की बिक्री बड़े चाव से हो रही है। यहां के मालपुओं का स्वाद देश-दुनिया तक प्रसिद्ध है। विदेशी पर्यटक भी मालपुओं को स्वीट चपाती नाम बोलते हुए बड़े चाव के साथ खाते हैं।अब तो यहां आने वाले देश-दुनिया के लाखों श्रद्धालु भी मालपुए को प्रसाद के रूप में ही खरीदकर ले जाते हैं। इनका स्वाद ही ऐसा है कि हर कोई खाने के लिए आतुर रहता है। पुष्करराज में हर साल अन्तरराष्ट्रीय मेले में आने वाले लाखों श्रद्धालु भी यहां आकर देशी-घी में बने मालपुए जरूर खाते हैं और लौटने के दौरान श्रद्धालु इसे ब्रह्माजी का प्रसाद के रूप में पैकिंग करवाकर साथ ले जाते हैं।
250 साल से पुष्कर में बन रहे मालपुए- हलवाई ओम जाखेटिया व प्रदीप कुमावत के अनुसार पुष्कर में करीब ढाई सौ साल से मालपुए बनाए जा रहे हैं। कुछ दशक पहले तक कस्बे में तीन चार दुकानों पर ही मालपुए बनाए जाते थे, लेकिन प्रसिद्धि बढऩे के साथ ही अब दस से अधिक दुकानों पर मालपुए बनाए जाकर बेचे जा रहे हैं। गरम-गरम शक्कर की चाशनी से लबरेज देशी घी से ििर्नमत रबड़ी के मालपुए खाने में स्वादिष्ट है और सेहत के लिए भी नुकसानकारक नहीं है।
प्रतिदिन 200 किलो मालपुओं की बिक्री-पुष्कर में प्रतिदिन प्रतिकिलो 360 रुपए की दर से 200 किलो से अधिक मालपुओं की बिक्री होती है। एक किलो में करीब 25 मालपुए तुल जाते हैं। ऐसे में प्रतिदिन पुष्कर में 5 हजार मालपुओं की बिक्री हो रही है। र्काितक मास, र्धािमक उत्सवों व पुष्कर मेला भरने के दौरान प्रतिदिन 1000 किलो मालपुए भी बिक जाते हैं। चूंकि रबड़ी व देशी घी में बनने के कारण ये मालपुए 25 दिन तक खाए जा सकते हैं।
ऐसे बनाए जाते हैं मालपुए-रबड़ी के मालपुओं को बनाने में दूध व मैदा काम लिया जाता है। उत्तम फेट का दस किलो दूध लगातार उबालने के बाद गाढ़ा करके साढ़े चार किलो कर लिया जाता है। इस रबड़ीनुमा दूध मेें तीन सौ ग्राम मैदा मिलाकर घोल बना लिया जाता है। इस घोल से देशी गर्म घी में डालकर जालीदार मालपुए बनते हैं। कडक़ सिकाई के बाद मालपुओं को एक तार की चासनी में डुबो दिया जाता है। चासनी में केसर व इलायची मिलाने से मालपुओं का स्वाद बढ़ जाता है।
पुष्कर में गुलकंद भी है प्रसिद्ध-पुष्कर का गुलकंद भी देश-दुनिया तक प्रसिद्ध है। यहां का गुलाब जल दुनिया के हर कौने तक पहुंच रहा है। गुलकंद बनाने का यहां कारोबार बढ़ रहा है। पुष्कर में गुलाब की खेती होने से यहां गुलकंद व गुलाबजल बनाकर विदेशों तक निर्यात हो रहा है।
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