देशभर में करीब पांच लाख थैलेसिमिया वाहक (थैलेसिमिया माइनर) हैं, इन्हें इससे कोई परेशानी नहीं होती है, कइयों को जीवनभर पता भी नहीं चल पाता है कि वो थैलेसिमिया वाहक हैं। मगर जब भी दो थैलेसिमिया वाहक आपस में शादी करते हैं तो उनके परिवार में थैलेसिमिया मेजर संतान होने की संभावना रहती है। यदि एक थैलेसिमिया वाहक किसी सामान्य व्यक्ति से विवाह करे अथवा दो सामान्य लोग आपस में विवाह करे तो ऐसे दंपती के यहां थैलेसिमिया मेजर संतान कभी भी नहीं हो सकती। एक मात्र बचाव यही है कि दो थैलेसिमिया वाहक आपस में शादी न करें। यह मुमकिन तभी है जब शादी से पूर्व दोनों की रक्त की कुंडली (जांच) मिलाई जाए।
बोनमेरो ट्रांसप्लांट ही मुख्य इलाज अभी तक इस रोग का एक ही इलाज उपलब्ध है अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण (बोनमेरो ट्रांसप्लांट)। मगर कुछ कारणों से ये इलाज 1-2 प्रतिशत रोगियों को ही सफलतापूर्वक उपलब्ध हो पाया। इस पर पर 30 से 80 लाख रुपए का खर्चा आता है। यह सुविधा भी महानगरों में ही उपलब्ध है, मेचिंग डोनर नहीं मिल पाता है। वहीं यह प्रक्रिया काफी जोखिमपूर्ण है।
यह है राजस्थान व गुजरात में थैलेसिमिया की स्थिति
अजमेर में कुल रोगी-करीब 250 से 300 राजस्थान में कुल रोगी-8,000
गुजरात में कुल रोगी-12,000 देशभर में थैलेसिमिया रोगी-1.50 लाख
देशभर में प्रतिवर्ष चढ़ता है खून-40 लाख यूनिट
अजमेर में कुल रोगी-करीब 250 से 300 राजस्थान में कुल रोगी-8,000
गुजरात में कुल रोगी-12,000 देशभर में थैलेसिमिया रोगी-1.50 लाख
देशभर में प्रतिवर्ष चढ़ता है खून-40 लाख यूनिट
प्रतिवर्ष एक रोगी के चढ़ता है रक्त-20 यूनिट