बरसों से मटका बेचने वाले कुम्भकार रामचरण प्रजापति हल्लन बाबा का कहना है कि यह मटके सर्दी के समय में कई प्रकार की मिट्टियों को मिलाकर और चाक पर गढ़कर तैयार किए जाते हैं। जिनके सूखने के बाद अबे में तपाया जाता है। अबे से निकाल कर इनको घर में ही कही इक_ा कर लेते है और गर्मी आने पर इन्हें बाजार में बेचने के लिए सजाया जाता है। इस बार कोरोना संक्रमण के चलते मटकों की बिक्री पर भी ग्रहण लगा हुआ है। दिन भर में बहुत कम ही मटके बेचे जा रहे हैं। रविवार को संडे कफ्र्यू के चलते उन्हें अपनी टाल बंद करनी पड़ी थी। सोमवार को बिक्री तो बढ़ी है, लेकिन अभी पूरी तरह मांग नहीं निकल रही है, अन्यथा अन्य वर्षों की तुलना की जाए तो अप्रेल तक मटकों का पूरा स्टॉक समाप्त हो जाता था।