कानून में लचीलेपन का असर अब धीरे-धीरे नजर आने लगा है। एक ओर जहां अस्पताल प्रशासन की ओर से मरीज को लाने वाले शख्स का ब्यौरा नहीं रखने की बाध्यता एवं किसी तरह का खर्च नहीं वसूलने के चलते राहगीर व आमजन भी सरकारी एवं गैर सरकारी अस्पतालों तक गंभीर घायल को पहुंचाकर इलाज शुरू करवा रहे हैं। संभाग मुख्यालय के सबसे बड़े जवाहर लाल नेहरू अस्पताल में भी पिछले दो सालों के आंकड़ें बताते हैं कि गंभीर घायलों में से 80 प्रतिशत की इलाज से जान बच पाई है। गुड सेमेरिटन योजना का असर दुर्घटना में जान बचाने के लिए सार्थक साबित हो रही है।
मददगार के लिए अब नहीं है ये बाध्यता
-अगर आप भले मददगार हैं तो पंजीकृत सरकारी एवं गैर सरकारी अस्पताल में आप को रुकने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा।
-पंजीयन या भर्ती खर्चों के भुगतान की मांग अस्पताल प्रशासन नहीं कर सकेगा।
-अस्पताल आपको नाम एवं व्यक्तिगत विवरण के लिए भी बाध्य नहीं करेगा।
-यदि कोई गुड सेमेरिटन चाहे तो घायल की मदद के लिए उसे अस्पताल की ओर से प्रोत्साहन के रूप में प्रमाण पत्र उपलब्ध कराया जाएगा।
-जांच अधिकारी भी सादे कपड़े में कर सकता है पूछताछ -आप ने मदद कर किसी घायल को अस्पताल पहुंचाया है और आप गवाह के रूप में सहमत हैं तो जांच अधिकारी (पुलिस) सादे कपड़े में एक बार पूछताछ करेगा।
-घटनास्थल पर पुलिस नाम, पता, अन्य ब्यौरा गवाह के रूप में नहीं ले पाएगी। गवाह के रूप में इच्छुक नहीं होने पर पूछताछ नहीं की जाएगी।