कुछ किया जाए की हंसी लौटे
कवि हिमांशु बवंडर की कविता पसरे हुए हैं सन्नाटे…, कुछ किया जाए की हंसी लौटे… को श्रोताओं ने सराहा। कवि योगेन्द्र शर्मा ने कश्मीर के जर्रे-जर्रे पर अधिकार हमारा है, भारत माता का मस्तक हमको प्राणों से भी प्यारा है… व हार नहीं मानी हमने युग के चांद सितारों से, लेकिन अक्सर हार गए हम घर के ही गद्दारों से… प्रस्तुत की तो पांडाल भारत मां की जय से गूंज उठा।
पैरोडियों से लोगों को हंसाया
गीतकार राजेंद्र गोपाल व्यास ने जाने क्या बात है इस मुलाकात में, गीत झर-झर झरे आज की रात में… व पनघट का भाटा पर खींच्यो आवे रे, कोरो छुगल्यो गुड़-गुड़ करतो जल भर लावे रे… की प्रस्तुति दी। जयपुर के कवि केसरदेव मारवाड़ी, केकड़ी के कमलेश शर्मा व बारां के मारुति नंदन ने भी पैरोडियों से लोगों को हंसाया। सम्मेलन का संचालन कवि बुद्धिप्रकाश दाधीच ने किया। लोकरंजक गीत गोरी सावन मार गयो थारो रे, परण्या पाछे छोरा ने तू करगी फेर कुंवारो रे… पर श्रोताओं ने ठहाके लगाए।