पोखर पर लगती भीड़ झल्लूकाझोर गांव में आसपास पानी के सभी स्रोत सूख गए हैं। यहां जलदाय विभाग की ओर से भी पानी पहुंचाने की कोई योजना भी नहीं है। ऐसे में गांव का लगभग सूख चुका तालाब लोगों के लिए पानी का सहारा है। हालात यह हैं कि गंदे-मटमैले पानी को भरने के लिए भी पोखर पर भीड़ लगी रहती है। लोग कपड़े या छलनी आदि से छान कर यह पानी पीने और पशुओं को पिलाने को मजबूर हैं।
खतनाक साबित हो सकता है पोखर का पानी इस पोखर का पानी ग्रामीणों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। क्योंकि इसे पीकर वे बीमार पड़ सकते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि जब तक बस चलता है वे इस पानी को नहीं पीते हैं। सिर्फ पशुओं आदि के काम में लेते हैं, लेकिन कई बार मजबूरी में उन्हें यह पानी पीना भी पड़ता है।
पशुओं का नहीं रखा ध्यान पार्वती से डांग के गांवों में पानी पहुंचाने की योजना में यह ध्यान नहीं रखा गया कि इन इलाकों में लोगों के पास पशुधन बहुत संख्या में है। गर्मियों में उनके चारे-पानी का कोई इंतजाम डांग के गांवों में नहीं होता है। पशुओं के साथ-साथ लोगों के लिए भी पीने का पानी नहीं मिल पाता। इसीलिए गांव के गांव नदियों के किनारे अपनी मवेशी के साथ पलायन कर जाते हैं और बारिश आने पर ही वापस आते हैं। इस क्षेत्र के गांवों में गर्मियों के मौसम में पलायन कई दशकों से हो रहा है, लेकिन सरकारी उदासीनता के चलते इन इलाकों में ग्रामीणों और उनके पशुओं के लिए पीने के पानी के माकूल इंतजाम नहीं हो पा रहा है।
योजना तो बनाई पर, आधी-अधूरी 2013 में डांग क्षेत्र के 82 गांव और 61 मजरों को पेयजल आपूर्ति के लिए पार्वती बांध से पाइप लाइन बिछाई गई थी। इसके तहत गांव के लिए एक पब्लिक सप्लाई पॉइंट (पीएसपी) व एक कैटल वाटर टैंक (सीडब्ल्यूटी) बना रखे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि इनमें भी कई-कई दिन में मात्र 15 मिनट के लिए पानी आता है। झल्लूकाझोर गांव में तो पानी की कोई सुविधा ही नहीं है।